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मलाराधना
आश्चम
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जिसको यह भ्रतज्ञान है वह नेत्रास अंध होने पर भी मोक्ष नगरीके कल्याणकारक मार्गमें सुखसे जा सकता है.
यह ज्ञानावरण कर्म इस प्रकारका अज्ञान उत्पन्न कर देता है कि उसको हटाने में कोई समर्थ नहीं है. इसका निवारण करने में कोई उपाय है नहीं. असावावेदनीय कमके उदयस अमृत भी विष होता है और तण मी छगका कामना है. बंधु भी बन जाते हैं.
शानाबरणस्य तु क्षयोपशम किं स्पादिश्याह
मुक्खस्स वि होदि मदी कम्मावसमे य दीसदि उवाओ। णीया अरी वि सम्छं बितणं अमयं च होदि विसं ॥ १७३० 11
अस्ति कमोक्ष्ये बुद्धिरूपायमवलोकते।
विपक्षो जायने पंधुः शस्त्रं पुष्पं विषं सुधा ॥ १७९७ ॥ विजयोदया-मुक्खस्स वि होदि मही मूर्खस्यापि भवति मतिः 1 कम्मोषसमेय वीसदि उपाओ कोपशमे शानावरणस्य तु क्षयोपशमे सति उपायोपने शिमगत्यपुण्यकरियाल । जीया अरी विशषयोऽपि वंधत्रो भवति सञ्छपि तणे शरणमपि सूर्ण भवति, अमई होदि विसं विषमण्यमृतं भवति सद्योदये।
तद्विपर्ययवर्शनात्तत्तत्कौनिवार्यतां दृढयति
मूलारा-सुम्सस्स वि यथाजातस्य । कम्मोवसमे तथाविधमतिज्ञानावरणझयोपनमे सति । उवाओ कर्मोपशमस्य साधनं । न बिम विषमपीत्यर्थः । असद्वेगोदयामात्र सद्योदये वा सति विषदादयोऽपि यांचवादिभावं अनंति । सद्भापकरणक्षपणप्रगुणकर्मण उपशमे उदये वा उपायो लोके शालेच प्रतीयते इति समन्वयः ॥
झानावरणीय कर्म के क्षयोपशमसे क्या होता है इसका विवेचन
अर्थ-ज्ञानावरणीय कर्मका क्षयोपशम होनेपर मुर्ख भी विद्वान होनेमें देर नहीं लगती है. ज्ञानावरण शयोपशमसे संकटसे पार पडनेका उपाय ध्यानमें आ सकता है. क्योंकि उस समय पुण्यकर्मका उदय होजाता है, शत्रु भी मित्र होते हैं. शस्त्र भी नृणतुल्य निःसार होता है अर्थात शस्त्रप्रहार भी पुष्पमालाके समान अनुभवमें आ जाता है. विष भी अमृत होता है.
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