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ROSCARRIES
मूलाराधना
आश्वा
यमानदेवनारकमानवतिर्यकत्वारव्यगतिपरिणाममहणाय प्रभूतमार्गगमनाय च कृतप्रयाणाः । संबंधी बांधवाः । आसया यानाश्रित्य प्राणिनो जीवितुमुत्सईते ते आश्रयाः स्वामी, भृत्यः पुत्रो भ्रातेत्येवमादयः ।
अर्थ-नानाप्रकारके शुभाशुभपरिणामोंसे जिनको भिन्न २ गतिबंध हुआ है ऐसे अपने पंधुगण कर्मके वश होकर देवगति, मनुष्यगति, तिथंचगति और नरकगति एतत्स्वरूप पर्याय ग्रहण करने के लिये प्रयाण करते हैं. इसलिय बधुगण भी अनित्यही हैं. उनके ऊपर मोहयुक्त होना अयोग्य ही है. जिस गतिका बंध हुआ है उसको स्यागनका सामर्थ्य इनमें यदि होता तो ये स्थिर माने जाते थे. परंतु जो गति ग्रहण की थी उसको छोडकर जीव अन्य अन्य मति ग्रहण करते जाते हैं. पिता पुत्रादिक पूर्व पर्याय छोडकर अन्यगतिको प्राप्त करते हैं तो भी उनका भुवी माना जायगा तो ये मेरे स्वजन है ये परजन है इनका विवेकही नहीं रहेगा
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संवासो वि अणिच्चो पहियाण पिण्डणं व काहीए ॥ पीदी वि अच्छिरागोत्र अणिच्चा सव्वजीवाणं ॥ १७१९ ॥ छायानामिच पांथानां संवासो नश्वरों गिनाम् ॥
चक्षुषामिव रागोऽनन स्नेहो जायते स्थिरः॥ १७८६ ।। विजयोदया-संचासो पि सहारस्थानमपि बंधुभिभित्रैः परिजनी, अणिस्बो अनित्यः । पधिपाणंपिण्ड इधछाहीए नानादिरदेशागतानां पथिकानां मित्रस्थानयायिनां मार्गोएकंठस्थितनिविडतरवदिपलाशाबारविनतशा. खाकरशतनिवारितधर्मरहिमप्रसरतरुवरशीतलाचिरलविपुलछायायो पांधानां समाज इव । पीदीवि प्रीतिरपि । अपिल सगोच्च प्रणयकलहपांसुपातदृवितप्रियतमालुठापाठीनोदरधषलळोचनांतराग इच अनित्या सर्वजीवानां । नयायधियावरणविष कणिकाप्रणालोचनप्रलयं संविधातीति प्राणभृतामनुभवसिद्धमेध ॥
मुलारा--- संवासो बंधुमित्रपरिजनादिभिः सहावस्थानं । पथियाणं नानादिग्देशागतानां भित्ररथानाविना पांधानां । पिडणं मीलणे । छाहीए मार्गोपकंठस्यवृक्षवितानछायाशं । अच्छिरागोब्ब प्रणयकलहपांमुपासदूषितप्रियतमालुठनपाठीनोदरधवरलोचनगतो रागो लौहित्यं यया।
जिनके आश्रयसे प्राणी अपना जीवित धारण करनेमें समर्थ होते हैं वे मालिक, नोकर, पुत्र भाई वगैरह आश्रयस्थान भी वादलोंके समुदायक समान चंचल है. अतः सबसे मोह त्याग करके निःसंग होना चाहिये.
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