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मूलाराधना
आश्वासः
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पारतंत्र्येण प्राप्नुवंतः कथं तद्विमोक्षं लभेरनित्याचेतःस्रोतःप्रवृत्तिरित्ययः । जदिगुणचिंता यनीनों गुणा बिनीतत्वविरागस्वस्थपरहितैकरसिफत्वादयः । तेषां चिंता प्रमोद निर्भरेण मनसानुसंधान । सुइदुक्खाधिआसणा सुखदुःखयोः साम्येन भावनं उकंच
मित्रचिंतांगिनां मैत्री करुणाप्यनुकंपनं ।।
मुदिता सटुणस्तोष उपेक्षा समचित्तता ।। यथा बा तक्वार्थमतेनायोचाम धर्मामृते तथा मैञ्यादयो भाव्याः ॥ वृत्तं ।
मा भूत्कोपीह दुःखी भजतु जगवसद्भर्मशमति मैत्री । ज्यायो हत्तेषु रज्यन्नयनमधिगुणेष्वेष्विति प्रमोदम ।। जागोजमानिनिति का जातिगामेहि शिक्षा :
का द्रव्ये श्वित्युपेक्षामपि परमपदाभ्युद्यता भावयन्तु । मैत्री वगैरह भावनाओंके विषयोंका वर्णन
अर्थ-अनंतकालसे मेरा आत्मा घटीयंत्र के समान इस चतुगंतिमय संसारम भ्रमण कर रहा है. इस संसारमें संपूर्ण प्राणिओंने मेरे ऊपर अनेकवार महान उपकार किये हैं ऐसा मनमें जो विचार करना वह मैत्री भावना है. अथवा संपूर्ण माणिऑमें किसीको भी नुःख न उत्पन्न हो ऐसी मनमें इच्छा रखना इसको भी मंत्री भावना कहते हैं.
शारीरिक, मानसिक, और स्वाभाविक ऐसी असह्य दुःखराशी प्राणीऑको सता रही है यह देखकर अहह इन दीनप्राणिओंने मिथ्यादर्शन, अविरति, कपाय और अशुभयोगमे अशुभकर्म उत्पन्न किया था वह कर्म उदयमें आकर इन जीवोंको दुःख दे रहा है, ये कर्मवश होकर दु:ख भोग रहे हैं इनके दुःखसे दुःखित होना करुणा है. ये इस दुःखसे कैसे मुक्त होंगे ऐसी मनमें आर्द्रता उत्पन्न होना करुणा है. यतिओंके गुणोंका विचार करके उनके गुणों में हर्ष मानना यह प्रमोद भावना का लक्षण है. यतिओंमें नम्रता, वैराग्य. निर्भयता, अभिमानरहितपना, निर्दोषता और निर्लोभीपना ये गुण रहते हैं. मुख प्राप्त होने पर रागरहित रहना और दुःख प्राप्त होनेपर द्वेषभाव न होना यह उपेक्षा भावना है, ऐसी भावना क्षपक अपने मनमें भाता है. समताका वर्णन समास.