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Trinition
मूलाराधना
आश्वासः
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अन्वेषण करने पाली, सर्वज्ञकी आज्ञाको मगट करनेवाली ऐसी तर्कशक्तिके द्वारा में भव्यजीवोंको जिनमतिपादित तत्वोंका स्वरूप कह सकंगा ऐसा तत्वस्वरूप जाननेवालेके मनमें जो चार बार विचार उत्पत्र होना यह भी आज्ञाविचय नामक धर्मध्यान है.
मैं अनादिकालसे इस घोर संसारमें भ्रमण कर रहा हूं, मेरे मनवचन और कायकी प्रवृत्ति स्वछंदसे होती है. इस अशुभ मन वचन काय योगसे में किस उपायसे अलग हो सकुंगा एसी अपायम बार बार स्मृति होना यह अपायविषय नामक धर्मध्यान है..
मिध्यादृष्टि लोक जन्मांध मनुष्य के समान हैं. उनको सत्य मोक्षमार्गका शान नहीं है इसलिए सन्मार्गसे वे बहुत दूर जारह हैं. एसा उनके विषयमें चार बार विचार उत्पन्न होना इसको भी अपायविचय कहते हैं. ये मिथ्या दृष्टि लोक मिथ्यादशेन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र से कैसे अलग होंगे ऐसा बार बार मनमें चिंता होना | यह भी अपायविषय ध्यान है.
कर्मके मूल भेद आठ है . उत्तरभेद एक सौ अहचालीस है. इन कर्मों के प्रति बंधादिक चार भेद होते हैं. इनका मधुर और कटुक ऐसा फल मिलता है. आत्मामें तीव्र. मंद, मध्यम रूप अनुभवबंध उत्पन्न होता है. द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी अपक्षास इन कर्मों में विशेषता उत्पन्न होती है. विशिष्ट गतिमें और विशिष्ट योनिओंमें विशिष्ट कर्मका फलानुभव जीवको प्राप्त होता है. इस प्रकार विपाकका अर्थात् कर्मफलका गर बार विचार जिसमें उत्पन्न होता है उस ध्यानको विपाकविचय. ध्यान कहते हैं.
घेतका आसन, झाष्ट्ररी और मृदंगके समान तीन लोकका आकार है ऐसा विचार करना संस्थानविचय नामक धर्मध्यान है। धर्मध्यानस्य लक्षणं निर्विशति
धम्मरस लक्खणं से अज्जवलहमत्तमद्दवोबसमा ॥ उवदेसणा य सुत्ते णिलग्गजाओ रुचीओ दे ॥ १७.९ ॥ माहवार्जवनैःसंग्यहेयोपादेयपाटवं ।। जयं प्रवर्तमानस्य धय॑ध्यानस्य लक्षणं ॥ १७०६ ।।
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