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भूलाराधना।
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विजयोक्या-अर दे कमा पमाण यदि ते माप्रमाणं । अरहतादी भईहादयः । भवेज्ज भवेयुः । सपएण क्षपके । सरलकिन कई परममा तत्साक्षिकं कृतं प्रत्याख्यानं । सोण भेजिज्ज क्षपको न नाचायेत् ॥
व्यातिरेक दर्शयतिमूलास--पमाणं अतिक्रमणाविषयः । इबेज भवयुः ॥
अर्थ-यदि उसने अर्थात् क्षपकने अहंदादिकोंको प्रमाणभूत-कल्याण करनेवाले समझा है तो उनके प्रत्यक्षमें किया हुआ प्रत्याख्यान नष्ट करना अपकके लिए कैसा उचित हो सकता है ? अर्थात् अहंदादिकोंको सामीभृत समझकर किया हुआ प्रत्याख्यान तोड देने में मिथ्यात्यकी प्राप्ति होती है. जो कि अनंत संसारम भ्रमण कंगन में हेतु है.
सविस्वकदरायहीलणमाबहा रस्स जह महादोसं ।। तह जिणवरादिआसादणा वि दोसं महं कुणदि ।। १६३६ ॥ साक्षीकृत्य पराभूनाः कुर्वते परमेष्टिनः ॥
पुनःसथो महादोष भूमिपाला इव स्फुटम् ।। १७०१ ।। बिजम्मीदया-सम्पिकादराग्रहीलाक्षीका राजपरिभवः । आवहदि रस्स जद महादोस भानयति पथा नरम्य महासंदीप । नद जिणवदि प्रासादणा राधा अईदाप्रासादनापि। दोसे महं कदियो महान्तं करोति ॥
जिनादासाद नादोपमहत्र ममर्थयते-- मुलारा-हीलणं परिभवः । मह महातम ।।
अर्थ-किसी कार्य में राजाको साक्षी समझकर हमने यदि वह कार्य नहीं किया अर्थात् प्रतिज्ञाका नाश किया तो हमने राजाका परिभर किया ऐसा समझना चाहिये प्रतिज्ञा भंग करनेवालोंको राजा दंडित करता है। बह उसको महान् अपराधी सभाकर दंडका घोर दुःख देता है. उसी प्रकार जिनेश्वरादिके सामने प्रतिज्ञात प्रत्याख्यान का भंग करनेपर जिनेश्वरादिकोंका हमने घोर अविनय किया है ऐसा समझना चाहिये. यह अचिनय महान् दोषोंको उत्पन्न करता है,
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