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मूलाराधना
अर्थ-जैम कोई मनुष्य समुद्रको पीकर भी तृप्त नहीं हुआ तो वह क्या एकाद हिमबिंदुका आस्वादन करनेसे तृप्त होगा? वैसे हे क्षपक तू आजतक आहार भक्षण कर तप्त नहीं हुआ है. आज तेरे कंटमें प्राण आये है तो आज आहार ग्रहण कर तू नृप्ति की प्राप्ति कर लेगा क्या? विचार कर और आहारच्छा छाड द.
आश्वासः
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को एत्थ विभओं दे बहुसो आहारभुत्तपुठचम्मि ॥ जुज्जेज्ज हु अभिलासो अभुतपुयाम्मि आहारे ॥ १६५९ ॥ भुक्तपूर्वे यते ! कोऽस्मिनाहारे तव विस्मयः ॥
अपूर्वे युज्यते कर्तुमभिलाषो हि वस्तुनि ॥ १७६५ ।। विजयोदया-को एत्य विभो कोऽत्र विस्मयः । आहार बहुसो भुत्नपुञ्चे युज्यते आहारार्थे अमिलापो भुक्तपूर्वे..
मूलारा-आहारा आहारे । जुजेज्ज युक्तो भवेत् ।
अर्थ-जो आहार पूर्वकालमें अनेकवार भक्षण किया था उसमें फिर अभिलाष तेरे मनमें उत्पन्न हुई है. इसमें आश्चर्य करना फिजूल है जिसका भक्षण किया नहीं था उसमें भी अभिलाषा जीवको उत्पन्न होती है.
आबादमेत्तसोक्खो आहारण हु सुखं बहुं अस्थि ॥ दुःखं चैवत्थ बहुं आहटुंतस्स गिद्दीए ।। १६६० ॥ आपानसुरबदे भोज्ये न सुख बहु विद्यते ॥
गृद्धितो जायते भूरि दु:ग्वमवाभिलाष्यतः ।। १७२६ ॥ विजयोदया-आवाद मित्तसोक्तो जिलाप्रपातमानसुख आहार । न सुखमय बदस्ति । दुःखमेवान बलु अमिलषत आहारगुज-या ॥
मुलारा- आबादमेत्तसोक्सो जिहामेलापकमावसुखः । आइतस्स अभिलपतः । अर्जयनो वा ।। . . अर्थ-जब जिह्वाके उपर आहार आता है तभी मुख होता है. वह भी सुख अत्यल्प है. परंतु अतिशय