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बुलाराधना
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अर्थ - शोक, विषाद, दुःख, संक्लेशपरिणाम करनेपर तथा रुदन करनेसे भी दुःखों का शमन नहीं होता है. अथवा उसमें कुछ विशेषता भी नहीं होती है.
अण्णोवि को विण गुणोत्थ संकिलेसेण होइ खवयस्स ॥ अहं सुसंकिलेसो ज्झाणं तिरिया उगाणमित्तं ॥ १६२४ ॥ नान्योsपि लभ्यते कोऽपि संक्लेशकरणे गुणः ॥ केवलं ते कर्म तिर्यग्गतिनिबंधनम् ।। १६८९ ।।
जियो को बिया गुणोत्य अन्योन्यत्र गुणो न कश्चिच्छोकादिना संक्लेशेन । प्रेक्षापूर्वकारिणो हिसार यस्य साध्यं फलं अस्ति । संशेन न किंचित्फले अपि मुमुक्षोः, अपि तु संक्लेशपरिणामो ह्या ध्यान ममनोविप्रयोगाख्यं तच तिर्यगापो निमिनं । ततो भवदीयः मक्लेशो दुरुतरे तिर्यगावर्ते निपातयतीति भयोपदर्शनं तं ॥
परिदेवनादिदुर्थ्यामादुपरांतरग' पे मुमुक्षोर्न भवत्यपि महाननुपकारः स्यादित्यावेदयति -
मूलारा - अष्णो दि प्रवृत्तदुःखं पिशमापकर्षविलक्षणतः पुण्यबंधसाधुकारादिकः । गुणो उपकारः । अत्थ अत्र असद्वेग्रोदयाद। पतिते सतिं दुःखे । संकिले सेण परिकूजितादिना । खवयस्स अशुभकर्मक्षपणोद्यतस्य । अहं वेदनास्मृतिसमस्वाद्दाराख्यमार्तध्यानं । तिरिआउगणितं तिर्यगायुष्क कर्मबंध निबंधनं । ततोऽस्मादस्पदुःखादुद्विजमानं भवतं दुरुत्तरे तिर्यदुःखार्ते संक्लेशः पातयतीति भयं उपदर्शनार्थमिदं ।
अर्थ - शोकादिक संक्लेश परिणाम उत्पन्न करनेसे कुछ भी फायदा नहीं होता है. जिससे फायदा होता है बुद्धिमान लोक बही कार्य करते हैं. संक्लेय परिणामोंसे मुमुक्षुओंको कुछ भी फल प्राप्त होता नहीं उनसे तो उलटा अमनोज्ञ विप्र नामक आर्तध्यान उत्पन्न होता है. अर्थात् विप, कंटक, शत्रु आदिक प्रतिकूल - अनिष्ट पदार्थों की प्राप्ति होनेपर वे पदार्थ मेरेसे कम अलग होंगे ऐसा बार बार चिंतन होना ही अमनोज्ञ विप्रयोग नामक आर्तध्यान है. इसकी उत्पत्ति संक्लेश परिणामोंसे होती है, यह ध्यान तिर्यचायुका बंध होने में कारण है. अतः हे क्षपक यदि तु इस अल्प दुःखसे भययुक्त होगा तो उत्पन्न हुए संक्लेश परिणाम तुझे दुर्निवार तिर्यग्गतिमें गिरा देंगे. अतः तू संक्लेशपरिणामों को छोड दे.
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आश्वासः
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