________________
आय
मूलाराधना
१२४०
मूलारा-मोगणासम्मि भोगांगविनाशे । पडिविसिठ्ठ अधिकतर।
बाह्य वस्तु के संयोगसे जो सुख प्राप्त होता है उससे उस वस्तुका वियोग होनसे प्रात होनेवाला दुःख अधिक है. इसलिये स्वल्पसुखके लिये कोन दुःखसे भयभीत सचेतन प्राणी-विद्वान मनुष्य दुःखसमुद्र में गिरना चाहेगा.
इस अभिप्रायका आचार्य उल्लेख करते हैं___ अर्थ--मधुर अन्न तांबूलादिक पदार्थोका भोग कहते हैं. स्त्री, वस्त्र, अलंकारादिकाको उपभोग कहते हैं. इन भोगोपभोगोंमे जो सुख आत्माको प्राप्त होता है. तथा भोगसाधनात्मक इन पदाथाँका वियोग होनेसे जो दुःख उत्पन्न होता है. इन दोनों मेंसे दुःख ही अधिक समझना चाहिये. अधीन सुख साधनोंका नाश होनेसे मनुष्य को अधिक दुःख होता है.
देहे छुहादिमहिदे चले य सत्तस्स होज्ज कह सोक्खं ।। दुक्रवस्स य पडियारो रहस्सणं चव सोक्सं ख ॥ २२९९ ।। क्षुधादिपीडिते देहे समासक्तः कथं सुखी ॥
दुरवस्यास्ति प्रतीकारो न्हवीकारोऽथवा सुखम् ॥ १२९० ॥ विजयोदया-देहे शरीरे मनुजानां । छुहादिमदिरे झुधा, पिपसया, शीतोष्णेन, व्याधिभिश्च मथिते । चले मनित्ये च | सचस्स मासकस्या किं सुखं दोज किमत्र सुखं भवेत् । तुकास्पय पडिगारो दुःखस्य प्रतीकार! रहस्सणं वेय हस्खकरणं पय सोप सौण्यं । खुशदः पादपूरणः दुःखप्रतीकारोत्पत्ती वा दुःखस्य सुखमित्यनेनाण्यातम् ।।
किंचित्कंथचिलब्धेष्यपि इन्छानुरूपभोगेषु क्षुदादियाथाकदर्धितेऽनित्ये विनाशिनि च मानुषदेहे जाभदादरस्त कथं सुखस्य गधोऽपि सत्यः स्यादिति व्यवस्थापयति---
मालारा--धादिमधिदे बुभुक्षादिकर्थिते । चले अनित्ये । सत्तस्स आसक्तस्य मनुतस्य । पडियारो निराकरणं । रहस्सणं हासनं ॥
___ अर्थ-- यह देह भूख, प्यास, शीत. उष्ण और रोगास पीडित होता है तथा अनित्य भी है ऐसे देहम