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मूलाराधना
आश्वास
यिजयोदया-इंदिर कसायसिंगो कमियकपाययशीकृतः, मुंगे मनश्च यो मलिनगात्रः सन् । सो समणरुषों मसमणो स श्रमपरूपो म भ्रमणः । सो चिसकम्मसषणी प स चित्रकर्मभ्रमण ष । परमाधमणसरशरूपोऽपि यथा चित्रश्चमणो मधमणस्तवमशुभपरिणाममण: ॥
मूलारा-चित्तकम्मसमणोव्य चित्रलिखितयतिरिव । समणरूवो परमार्थयतिसशरूपोऽपि ।
अर्थ-जो इंद्रिय और कपायके वश हुआ है, मुंडमस्तक, और मलिन शरीर है वह मुनि होनेपर भी मुनि नहीं माना जाता है. चद्द चित्रीलखित मुनिके समान है ऐसा मानना चाहिए. जैसे चित्र लिखित मुनि वास्तविक मुनि नहीं है वैसे इंद्रियवश कषायवश मुनि पाप परिणामोंसे मलिन होनेसे अशुभ कर्मके बंधक माने गये है इसलिए उनको मन नहीं समझना चाहिए.
शान नरस्य दोषानपहरति इंद्रियकवाय जयमुनेन यथा सत्यवतः प्रहरममावरणं च शत्रु नाशयतीत्युत्तरगाथार्थः, इंद्रिय कषायाजये ज्ञान दोषापारिवारुचं यसियन लो न साहरणं च खश्गचकारिक शजयत्वमतिशय नासाक्ष्यति ॥
णाणं दोसे णासिदि णरस्स इंदियकसायविजयेण ।। आउहरणं पहरणं जह णासेदि अरिं ससत्तस्स || १३३७ ॥ ज्ञानदोषषिनाशाय कषायेंद्रियनिर्जयः॥
शस्त्रं शत्रुविधाताय जायते सत्वसंभषे ॥ १३८५ ।। विजयोदया-णार्ण कान दोस घोपान् । णासिदि नाशयति । पारस्स नरस्य हरियकसायविजयेन । जह यथा । माउहरणं पहरा मायुषो हरणं प्रहरण शरं । सत्येन वर्तते ति ससस्यस्तस्य । अरिं रिपुं । णासेदि नापायति ।।
मूलारा-आवरण समाहः । सससस्स सत्वयुक्तस्य ।
इंद्रियां और कषायोंको जीतनेसे ज्ञान मनुष्यके दोषोंका नाश करता है, जैसे धैर्ययुक्त मनुष्यका शस्त्र और कवच शत्रूका नाश करता है ऐसा आगकी माथाका भाव है, इंद्रिय और कषायोंको यदि न जीता जायगा वो ज्ञान दोषोंका नाश नहीं कर सकेगा, जैसे धैर्यहीन मनुष्यके शस्त्र और कवच शत्रुको नहीं जीत सकते है.
अर्थ-ईद्रिय और कषायोंपर विजय प्राप्त करके ज्ञान पुरुषके दोपणका नाश करता है. जैसे धर्यवान मनुप्यका आयुध शत्रुका आयुष्य नष्ट कर देता है.
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