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लाराधना
आश्वासः
देहयोरासक्त्या तस्य धर्मे श्रद्धा तीला नारिस, यस्मात्तस्य भरतमोऽनरागः श्रद्धा नास्तीति संबंधः ॥ तदो इति पाठे तपः कतुं शक्तिर्मम नास्तीति प्रकाशनया तपोऽकरणावित्यर्थः ।।
अर्थ-उसका परिणाम निर्मल नहीं है ऐसा समझना चाहिये. शक्तयनुसार तपमें प्रवृत्त न होनेसे वह मायावी है ऐसा सिद्ध होता है. मायासे भाक्में परिणाममें शुद्धता नहीं रहती है और धर्ममें तीव्र श्रद्धा उत्पन्न नहीं होनी है. मुखमें और देश में बुद्धि संलग्न होती है इससेभी परिणाममें निर्मलता नहीं रहती है और धर्ममें तीव्रश्रद्धा नहीं उत्पन्न होती है.
अप्पा य वंचिओ तेण होइ विरियं च गृहियं भवदि ॥ सुहसीलदाए जीवो बंधदि हु असादवेदणियं ॥ १४५३ ।। वीर्य निगूयते येन नेनात्मा बंच्यते स्वयम् ॥
सुखलितया तेन कर्मासातं च बध्यते ॥ १५१२ ॥ विजयोरया-अपाय वंचियो भामा वंचितस्तेन | शायनुरूपे तपस्यनभ्युद्यतेन शक्तिश्च प्रच्छादिता भवति मुखासक्ततया जीवो बनान्यसानदनीय चानकमत्रेषु दुःखायः ॥
मूलारा -- स्पटम ।।
अर्थ-शक्त्यनुरूप तपमें जो प्रवृत्ति नहीं करता है उसने अपने आत्माको फसाया है और अपनी शक्ति भी टिपा दी है ऐसा मानना चाहिये. सुवासक्त होनेसे जीवको असाता वेदनीयका अनेक भवमें तीन दुःख देनवाला तीन बंध होता है. स . -- ----
---- विरियतरायमलसत्तणेण बंधदि चरित्तमोहं च ॥ देहपडिबद्धदाए साधू सपरिग्गहो होइ ॥ १४५४ ॥ . वीर्यान्तरायचारित्रमोहावर्जयसेऽलसः॥ शरीरमतिबंधेन जायते सपरिग्रहः ॥१५१३॥