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आश्वासः
मूलाराधना
नारकियोंके मस्तक, हाथ, पाय छूट जाते हैं. अतिशय क्षार और उष्ण जल कालकूट विषके समान जच व्रणोंमें प्रवेश करता है तब उनको अत्यंत दाहदुःख होने लगता है.
जब उनके हाथ और पैर जुड जाते हैं तब वे नदीके तटपर चढते हैं उस समय श्यामशबल नामके असुर बजकी शखलासे बंधे हए बडे २ पत्थर उनके गलेमें बांधकर पुनः पैंतरणाम उनको ढकेल देते हैं. पड़ने पर वे उस नदीमें डूबकर पुनः उपर आते हैं और पुनः डुब जाते हैं. असुरोंक द्वारा उत्पम किये मगर नामक प्राणीओंके हाथका आघात होने से उनका मस्तक पृट जाता है और वे पुनः नमें न जाते हैं..
पुनः जब ये तटपर आते हैं तब उनको असुरदेव झाडको निश्चल बांधते हैं और तीक्ष्ण लक्षावधि बागासे विद्ध करते हैं.
मदनंतर वे नारकी जिसमें वज्रके टुकडे मिल हुये हैं, और जो खदिर की अग्नी के समान लालरंगकी हैं ऐसी अग्नितप्त वालुकामें उन नारकिओंको बलात्कारसे इधर उधर घुमाते हैं. ऐसे समय जो दुःख उनको होता है हे क्षपका उसका तुम विचार करो.
जणीलमंडवे तत्तलोहपडिमाउले तुमे पत्तं ॥ जं पाइओसि स्वारं कडुयं तत्तं कलयलं च ॥ १५६९ ॥ तसायाप्रतिमााणे यत्प्राप्तो लोहमंडपे ।
आपसं पाय्यमानोऽपि प्रतप्तं कललं कटु ॥ १६२८ ।। विजयोदया-जं पतं तं चिंतहि यत्प्राप्तं दुःख तश्चितय । पीलमडवे फासलोहटिते मंडपे । नसलोपडि माउले तप्तलोहमतिमाकुले। बलात्कारसपायमानस्तमलोप्रतिमायुक्त्यालिगितो यद्दाख प्राप्तवानसि तन्मनसि निधेहि। जं पारदोऽसि खारं यत्पायितोऽसि क्षारं । कडगं कटुकं । 'तत्तं तप्तं ॥
मूलारा-जं गीलयंडपे काललोय दित्तमंजपे । तत्तलोहपडिमा कुले अमिलोह वर्णतानले गययुवातिसंपाते । तुम त्वया । पतं प्राप्त । बलात्कारसंपाद्यमानतप्तलोहप्रतिमायुवत्यालिंगनादिदुःखें । पजियो सि पायितोऽसि । कलयर्स ताम्रशीदाकतिलसर्जरसगुग्गुल सिक्यकलवणजतुवालेपाः काययित्वा मिलिताः कलकल इत्युच्यते ॥
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