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बलाराधना १४४६
यदकुशादिप्रहतैर्भजाम्ध कशाविवविश्व या ताशाः गावश्य तोत्रादिवधैः परेषां कुर्यन्ति कर्ममरणादकामाः २५ मत्या युतानामलमे तदेष विरागभावप्रमचे निमित्तम् तारग्विधानां बहवो हि कोटयः कथं प्रकुर्वन्त्यामितेतरस्य २६ वामानाचावेगैर्मद्दाजलोधेश्य समूयमानाः मृगाः खगाः सर्वसरीसृपाश्च सार्धं नियंते बहवो पतान्ये २७ इदानीं तिर्यग्गतिदुःखानुचिंतने गाथासप्तकेन क्षपकं व्यापारयति -
मुलारा - अनुपत्तो नरकगतः पश्चात् अपारं अतीरं चिरानुयंधिवात् । रहं घटीयंत्र । परिगदो जं । यद्दुःखं । चिंतेहि तं सव्यमिति वक्ष्यमाणेन संबंधः ।
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अर्थ - भयंकर वेदनाओंसे व्याकुल, पाररहित ऐसे तिर्यचगतीको प्राप्त हुआ तू अनंतवार जन्ममरणरूप यंत्र को प्राप्त हुआ था. उसका भी तू विचार कर, स्मरण कर. तियेचोके पृथिवी, वायु, जल, अभि वनस्पति और बस ऐसे अनेक भेद हैं.
१-२ कितनेक उन्मत्त मनुष्य पूर्वानुभूत दुःख भी यदि भूल जाते हैं तो देखे हुए सुने हुए अन्य लोगां के दुःख वे भूल जाते हैं इसमें क्या आश्चर्य है. अपना प्रमाद नष्ट होनेके लिये मनुष्योंको स्वयं के ज्ञात हुए भी अपरा कहनेही चाहिये. अपने दोषोंका स्मरण रखना और दूसरोंको कहना गुणोत्पत्तिके लिये कारण होता है. दोपस्मरण करनेसे और कहनेसे गुणांकी वृद्धि होती हैं.
३ मनुष्य ठंडी से बाधा होनेपर निर्वातस्थलका आश्रय करते हैं. उष्णतासे पीडित होने पर ठंडा जल पीते हैं भय उत्पन्न होनेपर निर्भय स्थानका आश्रय लेते हैं. द्वीन्द्रियादि जीव भी उपर्युक्त बाधाओं से अपना रक्षण करने में समर्थ हैं. परंतु एकेन्द्रिय जीवोंमें वह सामर्थ्य नहीं हैं.
४ जैसे वैराग्ययुक्त मोक्षेच्छु मुनिगण सर्वप्रकारके उपसर्ग सहते हैं वैसे वृक्षादिक एकेंद्रिय जीव पराधीन और दीन होनेसे हमेशा सर्व प्रकारके उपसर्ग सह लेते हैं.
५-९ जैसे जन्मांध, गूंगे, बहिरे लोक और बालक उनका कोई रक्षक न होनेसे दीन और परतंत्र होकर हाथी घोडे, पान वाहनादिकसे मर्दित होते हुए मरते हैं. वैसे इंद्रिय, त्रींद्रिय और चतुरिंद्रिय जीव भी उपर्युक्त प्रकारसे
आश्वास
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