________________
लाराधना
आश्वास
१७४७
SCREEN
मरते हैं उनको नारकिओंके तुल्य दुःख भोगना पड़ता है. ये जीव गांवमें अथवा अरण्यमें भी रहे परंतु सर्वत्र भयंकर मृत्यु हाथ धोकर उनके पीछे दौडना ही है. गाय, बकरा, मेंढा, वगैरे प्राणिोके हाथ पाओसे वे कुचले जाते हैं. स्थादिकोंके पहियोंसे उनका नाश होता है. वे स्वयंभी अपने देहसे अन्योन्यको पीडा देकर मरते हैं. कित्येक सोच के परसा सूखे हैं, पाय टूट जाते हैं तथा शरीर के सव अवयव रोगसे पीड़ित हो जाते हैं तब
आधिक दुःखी होकर महाकप्टसे प्राण त्याग करते हैं. दीद्रियादिक कोई जंतु इतने छोटे होते हैं कि वे एक पानीके बंदमें भी डब जाते हैं. निश्वासकी हवास भी उड जाते हैं. थोडीसी उष्णतासे भी उनको दु:ख होता है. ऐसे प्राणिओंको यदि उपर्युक्त दुःखाँकी प्राप्ति होगी तो कहना ही क्या ?
१०-५६ क्रीडामें चतुर, तरुण, एसा कोई मनुष्य जसे सरोवरमें प्रवेश करके वारंवार उन्मज्जन निमज्जन करता है अनेक प्रकारसे क्रीडा करता है. स्वाधीन होकर और अन्य कार्योको छोडकर जलक्रीडामें ही तत्पर होता है वैसे सर्व प्राणी भी जन्मसमुद्रके मध्यमें प्रवेश कर एक अन्तर्महर्नमें भी अनेक जन्मसमुद्रके मध्य में प्रवेशकर एक अन्तर्महमें भी अनेक जन्म मरणोको माप्त करते हैं. इस संसारसमुद्र में उनको दुःखरूपी कडबा पानी वारंवार पीना पडता है.
१२ उनके सूक्ष्म शरीर होनेपर भी उनको हमेशा तीव्र दुःख भोगने पड़ते हैं. जब उनको स्थूल शरीर प्रास होता है तब उनके दुःखादिक इतर स्थूलत्रस प्राणिआके समान ही देखे जाते हैं.
५३ इन द्वीन्द्रियादिक प्राणिको माता, पिता, बंधु, गुरु, स्वामी. मित्र, कोई भी हितकर्ता नहीं रहते हैं. बीमार होनेपर न इनके कोई संबंधी भी है जो कि उनको अन्न खानेको देंगे इन जीवोंको ज्ञान भी नहीं रहता है तो सुखकी प्राप्ति इनको कैसी हो सकेगी.
१४-१५ माता का वियोग होनेपर भी दुःखरूपी समुद्र मनुष्य तीर नहीं सकता तो जिनको माता ही नहीं है वे अत्यंत दुःखके स्थान क्यों नहीं पतंग, अर तूं भीति छोड़ दे, तेरेको कुछ दुःख नहीं होगा ऐसा आश्वासन मनुष्योंको मिलता है. इस प्रकार इन दीन प्राणिऑको कोई भी आश्वासन दनेवाला नजर नहीं आता है. और उनके ऊपर कोई दया भी करनेवाला दीखता नहीं
१६ उपर्युक्त प्रकारोंसे वे पशु चारों तरफसे उम्र मृत्युको धारण करते हैं. अर्थात् वे अनेक प्रकारसे मरण
१४४७