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मूलाराधना १४४८
के वश हो जाते हैं. जिनको पशुगतिके संबंध का ज्ञान हुआ है ऐसे मनुष्यों को छोड़कर अन्य कोई भी व्यक्ति उनका रक्षण करनेका प्रयत्न नहीं करती है.
१७ कोई पंचेंद्रिय पशु आपसमें लड भिड़कर दुःखी होते हैं. कितनोंको तो मनुष्य दुःख देते हैं. कितने पशु पापोदयसे और क्षुधा तृषादिकसे पीडित होकर दुःखी होते हैं. नानाप्रकार के भय उनके उत्पन्न होते हैंउनके दुःखोंको उपमा ही नहीं है ?
१८ कोई तियंच प्राणी इतने निदेय होते हैं कि वे अपने को भी खाते हैं, तो वे अन्य प्राणिओंको खाते होंगे इसमें अवयवह क्या है.
१९ ये पशु आपसको मारने के लिए टूट पडते हैं, कोई निर्देय प्राणी, उन दोनों को मारने के लिए दोडता है. कोई अकस्मात् आकर उनको मार देता है.
२० ये सच पशु अन्योन्यको मारनेका योग्य मोका देखते रहते हैं. और अन्योन्यको खाकर जीने की अभिलाषा करते है. अन्य प्राणी गेरेको मारेंगे ऐसा मय सभीके मनमें होनेसे उनको निद्रा आती नहीं इस विवेचनसे आपको मालूम होगा कि क्या ये प्राणी सुखी हैं ?
२१ वन हरिण पानी पीकर और तृण भक्षणकर पुष्ट होते हैं और हरिणीओंके साथ रहकर सानंददिन बिताते हैं. ये किसीका कुछ नुकसान तो करते ही नहीं परंतु व्याधाधिक दुष्ट मनुष्य से इनको हमेशा भय उत्पन्न होता है इसमें पूर्वकृत पापकर्म ही कारण हैं.
२२ हरिण अपने वालक और हरिणीसे वियुक्त होते हैं. और हरिणी भी अपने बालक और अपने इष्ट हरिणोंसे वियुक्त होकर दीननेत्रोंसे चारो दिशाओंको देखती हैं. इस रीतीसे दुःखित होकर भयंकर मृत्युके गाल में पोहोंचते हैं.
२१ कितनेक मनुष्य स्वभावतः पापी होते हैं. कुकची शिकार वगैरहका महत्त्व बताकर और दुष्ट शाखोक प्रमाण दिखाकर पशुओंको मारने में प्रवृत्त करते हैं तब वे भी दुर्गतिसे भयरहित होकर प्राणिओंको यथेष्ट मारते हैं और उनको खाते हैं.
२४ हरिणादिक पशुओंको वन में हिंस्र पशुओंसे भय रहता है और ग्राम में भी वे आवे तो दुष्ट लोकोंसे
आश्वास
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