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मूलाराधना
आवासः
होह सुतत्रो य दीओ अण्णाणतमंधयारचारिरस 14 सम्बावत्थासु तओ वढुदि य पिदा व परिसस्स || १.६६ ॥
अज्ञानतिमिरोक दि जायत दीपकस्तपः ।।
पितय सर्वावस्थासु करोति नहितं तपः ॥ १५२६ ॥ अघिजसोदया-होर रहनको यो सम्यकता प्रदीपो भवनि अमानतमलि महान संचरतः । एमन जगतां: नाक्य समी विनाशयति तपः नि चितं ॥ सर्वावस्थामुहिने तपो धर्तते पिता पंसः ॥
मूलारा-अण्णाणतमा प्रकृष्ठमज्ञानं । नदि तपसा विनाश्यते नत्कारणफर्मक्षपणात् ।।
अर्थ-अज्ञानरूप अंधकारमें संचार करनवाले इस जगतको उत्तम तप दीपकके समान है, अर्थात अज्ञान नामका अंधकार तपसे नष्ट होता है एसा मूचित हुआ. संपूर्ण अवस्था में तप पिता के समान हितकर
विसयमहापंका उलगडाए संकमो तबो होइ । होइ य णावा तरिदं तबो कसायातिचवलणदि ॥ १११७१ विभीमविषयांभोधेस्तपो निस्तारण प्लवः
तप उसारक शेयं विभीमविषयावटात् ।। १५२७॥ पिझयोरया-विसयमवापंकाउलगाए विषयो महापंकाकुलगर्ने र दुस्तरस्यात् । तस्मिन् संकमो भवति । तदुसरणे हेतुर्भवति तपः । तपो नौमधयितुं कापायानिवपलमवीं ।
मूलारा-गहार गर्ने अवटे । लघुनद्या मित्यन्मः । संकमो सेतुबंधः । अदिचयलणदि महानदी।
अर्थ-ये पंचेंद्रियोंके विषय जिसमें अतिशय कीचड है ऐसे गड्ढोंके समान है. कीचड युक्त गहोम | फसा हुआ आदमी उसमें से निकलकर बाहर आना अतिशय कठिन कार्य है. बैंम ही ये इंद्रियविषय भी हैं परंतु तपके सामयम इन विषयल्प गट्ठोंसे मनुष्य निकल सकता है. कपायस्पी अनिचपल नदी को उल्लंघनमें नए I नौकाकं समान है.