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" पूलाराधना
आमासः
अर्थ --- अभिनंदनादिक पांचसो मुनिओको कुंभकारकट नामक नगरमें यंत्रों में पेलकर मारा था तो भी उन्होंने आराधनाका त्याग किया ही नहीं.
गोठे पाओवगदो सुबंधुणा गोच्चरे पलिवदम्मि । डह्मतो चाणको पडियण्णो उत्तम अठं ।। १५५६ ।। वसदीए पलिविदाए रिठ्ठामध्चेण उसहसेणो वि ॥ .
अराधणं पायो सह पनि गुणाल । २५.७ ।। . कुलालेऽरिष्टसंज्ञन दग्धायां बसतो गणी ।।
साधं वृषभसेनोऽगादत्तमा तपोधनैः ॥ १६१६ ॥ विजयोदयान्ससदीप पक्लिविदाप वसती दम्मायो । रिट्टामात्यनामधेयन वृपमसेनः सह मुनिपरिषदा प्रतिपन्न आराधनाम् ॥
मूलारा-गोटे गोकुले । पाओबगदी प्रायोगमनं श्रितः । सुपंधुगा सुबंधुनाम्ना मंत्रिणा । गोच्चरे करीपे । पलिविदम्मि प्रदीपिते । एतां श्री विजयो नेच्छति ॥
मूलारा-रिट्ठामशेण रिनाम्ना मंत्रिणा । परिसाए परिपदा । स्वशिष्यसमाजेनेत्यर्थः । कुणालम्मि कुणालपुरे ॥
अर्थ - गोठेमें चाणक्य नामक मुनिने प्रायोपवेशन धारण किया था. सुबंधुनामक राजमंत्री उसका बैरी था. उसने गोमय-कंडोंकी राशिमें चाणक्य मुनिको आग्नि लगाकर जलाया. तो भी उन्होंने रत्नत्रयाराधनाका त्याग नहीं किया. और उसम अर्थ को वे प्राप्त हुए.
अर्थ- कुणालनगरकी एक वसतिकामें आग लंगाकर रिष्ट नामक राजमंत्रीने अनेक शिष्योंके साथ वृषमसेन नामक मुनिराजको जलाया तो भी संपूर्ण शिष्योंके साथ मुनिराजने आराधना को धारण किया.
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जदिदा एवं एदे अणगारा तिव्ववेदणट्टा वि ।। एयागी पडियम्मा पडिवण्णा उत्तम अठं ॥ १५५८ ॥