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आश्वासः
भलागवना
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मूलारा--"युको झयुतः ।। तेण तपसा साध्यसंवरनिराशुपकारच्युतत्वेन ।।
और भी दोपोंका वर्णन करते हैं--
अर्थ-पूर्वमें तपश्चरणके संघर और निर्जरा का वर्णन किलो पालादी कर सके। कर्म का संबर और निर्जरा नहीं होगी. अर्थात मंबर और निजगस वह पुरुष हमेशा वंचित रहेगा. जो अपनी शक्ति छिपाता है उसको मायाकषाय का और वीर्यातराय कर्मका बंध होता है.
तवमकरितस्सेदे दोसा अण्णे य होति संतस्स || होति य गुणा अणेया सत्तीए तवे करेंतस्स ॥ १४५७ ॥ अकुर्वतस्तपोऽन्यपि पोषाः सन्ति तपस्थिनः ॥
कोणस्य पुनः शस्या जायन्ते विविधा गुणाः॥१५१६ ॥ विजयोदया-तषमकरेंतस्ल तपस्यनुतस्येमे दोषा अन्ये च भयंतीति सातव्याः । भवति यानेकगुणाः शक्त्या -तपसि यतमामस्य ।
मूलारा स्पष्टम् ॥
अर्थ-तपश्चरणमें उद्युक्त न होनवाले पुरुषको ये दोष वो होते ही है परंतु अन्य भी दोष उत्पन्न होत हैं. जो व्यक्ति तपश्चरण में प्रत्यनुसार प्रवास होते हैं उन में अनेक गुणोंकी उत्पत्ति होती है.
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तपोगुणपण्यापनायोत्तरप्रबंध:--
इह य परत य लोए अदिसयपूयाओ लहइ सुतवेण ॥ आवज्जिञ्जीत तहा देवा वि संइंदिया तवसा ॥ १४५८ ।। लोकवये पराः पूजाः प्राप्यन्तं कुर्वता तपः ।।
आवज्यन्तेऽरिचला देवाः पुरंदरपुरतसरा ॥ १५१७॥ विजयोन्या-हजन्मनि परब च तपसा सम्यक् कृतन अतिशयपूजा लभ्यते । यावज्यते च तपसा देवाः सन्द्रकाः ॥
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