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आश्वासः
मरापरता
तथा ज्ञानावरण कर्मका उदय होनेसे मेरेको हितबान आजतक नहीं हुआ था. अथवा उपदेशक मिलनेपर भी उसके उपदेशका अभिप्रायही मैं नहीं जान सका. कभी शान होनेपर भी मैने उस उपदेशपर विश्वास नहीं किया. वि. श्वास करनेपर भी चारित्रमोहकर्मक वश होकर नारित्र नहीं पाला. इसी कारण मैं संसारसमुद्र में हवा हूं इस प्रकारके शोकविचारसे निद्रा न होती है.
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जागरणत्थं इच्चेवमादिकं कुण कम सदा उत्तो ॥ झाणेण विणा बंझो कालो हु तुमे ण कायन्वो ॥ १४४३ ॥ सदैवमुपयुक्तन निद्रां निर्जयता त्वया ॥
न ध्यानेन विना स्थेयं पवित्रेण कदाचन ।। १५०१ ॥ विजयोदया-जागरणार्थ निगानिरासाय पषमादिकं कुरु कम सदोपयुक्तं । ध्यानेन विना यः कालोन | वर्तब्यस्त्वया।
मूलारा-जागरणस्थं निद्रानिरासार्थ । बंझो निष्फलः । तत्तदुपायसिौषधप्रयोगनिद्रामहान्चाधि जितवतापि त्वया सचानशून्येन क्षणमपि न स्थातव्यम् । तस्यैव कर्मसंषरणनिर्जरणकर्मणि धुरीणत्वात इति भावः ।।
अर्थ-निद्रका नाश करने के लिय इस प्रकारका उपयुक्त कम तूं कर. और ध्यानके विना एक कालकला भी तुझको नष्ट करना योग्य नहीं है.
संसाराडविणित्थरणमिच्छदो अणपणीय दोमाहि ॥
सो, ण खमो अहिमणपणीय सोदु व संघरम्मि ॥ १४४४ ॥ . न दोषामनपाकृत्य स्वप्तुं जन्मनि युज्यते ।।
अनर्थकारिणो रौद्रान्पन्नगानिव मंदिरे ॥ १५०२ ।। विजयोदया संसाराषिणिकरण मिच्छदो संसाराविनिस्तरणमिछमनपाकृत्य दोषान् न हि स्वन्तुं क्षमः। अहि अनपनीय स्वसुमिम गृहे ॥