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आश्वासः
मूलाराधना १३३८
मूलारा-आइडा परिद्विता । जबयोगविद्विसत्तस्स मेवानोपयोगेन यतव्यापारसहितस्य ।
परंतु मुनिराज कपायकंटकोंसे दुःख न होगा ऐसी सामग्रीसे युक्त होते हैं अतः उनको दुःख नहीं होता है. इसीके विवेचनार्थ माथा--
अर्थ-जिसने संतोषरूपी मजबूत जूता पहना है, और भेदज्ञानोपयोग रूप आंखोंसे जो देखता है ऐसे मुनिराजको कषायविषयकंटक तिलमात्रमी दुख देने में समर्थ नहीं होने हैं.
उहणा अदिचवला अणिग्गहिदकसायमच्छडा पावा ॥ गंथफललोलहिदया णासंति हु संजमारामं ॥ १४०३ ॥ कषायमर्कटा लोलाः परिग्रहफलैषिणः ।।
लुपन्ति संयमारामं योगिनो निग्रहं चिना ॥ १४५९॥ विजयोदपा-उहणा असंयता अतिचपला अनिगृहीताः कषायमर्फटाः, परिग्रहफलासक्तहृदया नाशयन्ति संयमाराम ।
मूलारा--अहणा उद्यूत्ताः । अणिग्गहिवा अकृतनिमहाः संतः।।
अर्थ-जो असंयमको उत्पन्न करते हैं, अतिशय चपल हैं, जिनका निग्रह नहीं किया है ऐसे कषायमर्कट परिग्रहरूप फलोंपर लुब्ध होकर संयमरूपी बगीचोंको उद्ध्वस्त करते हैं.
णिच्चं पि अमज्झत्थे तिकालविसयाणुसरणपरिहत्थे ॥ संजमरज्जूहिं जदी बंधति कसायमकडए ॥ १४०४ ।। त्रिकालदोषदा नित्यं चंचला मुनिपुंगवैः॥
कषायमर्कटा गाई वध्यन्ते वृत्तराजुभिः ॥ १४६ ॥ विजयोदया-णि पि नित्यमपि ममाध्यस्थान, त्रिकालविषयदोषानुसरणपटून् , कषायमक म्यतयः संयमरज्जूभिनन्ति ।