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मूलाराधना
कहा है ? उत्तर--वियक ज्ञानका अभाव निद्राके समय होता है. अतः निद्रा मनुष्य को अचेतन करती है ऐसा कहा है. योन्यायोग्यविवेक ज्ञान न होने से आरमा अचेतन होता है, ऐसा कह सकते है. गाढ निद्रित हुआ मनुष्य हिंसा, मैथुन, परिग्रहादिक दोषों में प्रवृत्त होता है. निद्रा कर्मोदयवशायप्ति कयं मयापाकर्तच्या इत्यत्राह--
जाद अधिवाधेिज तुम णिहा तो ते करहि सज्झायं ॥ सहुमत्थे वा चिंतेहि सुणव संवेगणिवेगं ॥ ११४० ॥ यदा प्रयाधत निद्रा स्वाध्यायं त्वं तदाश्रय ।।
अर्थानणीयसो भ्यायन्कुरु संगनिर्विवी ।। १४५८ ॥ शिसोदया--.दिाि िदम र रापात भयं निद्रा। जसमा कुरु स्वाध्यायं । चूहमांश्च वा चितहि सूक्ष्मानान् चितय । सुणच मवेणिवेग णुप्य मवेजना निर्वजनी या का।
दर्शनावरणोदयोद्रेका विशंती निद्रा कथं मया निशेहूं शक्येत्यत्राह- . मूलारा- तुम त्वं । सुण ब शृणु वा । संवेगणिन्वेदं संबैजनी निर्वेजनी वा कथाम् ॥ निद्रा कर्मक उदय से भाती है अत: वह मरेस की हटाई जा सकेगी इस प्रश्नका उत्तर आचार्य देते हैं
अर्थ-यदि निद्रा तुझका सतावंगी तो तू स्वाध्याय कर, सूक्ष्म पदाथोंका विचार कर, संवैजनी और निजमी कथाओंका भी बण कर ये निद्रा जीतनके उपाय हैं.
प्रकरतरं निद्राषिजय हेर्नु निगदति- .
पीदी भए य सोगे य तहा णिहा ण होइ मणुयाणं ॥ एदाण तुम तिषिणवि जागरणथं णिसेवेोहि ॥ १४४१ ॥ निद्रा प्रीती भये शोके यतः पुसो न जायते । निर्जयाय ततस्तस्यास्स्वाभियं त्रितयं भज || १४९९ ।।
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