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मूलाराधना
आश्था
अलौकिकमानित्वोपदर्शनद्वारेणाहंकारनिराकरणं कारयितुमाह
मूलारा-अवमाणणकरणं परिभबकरं स्वस्य परस्व बा । दोस कुलतपोविद्यादिभिरारमोत्कर्षसंभाषनं परप्रधपणं पा । आजत्तो सर्वत्र समाहितः । सो णाम' स एव मानी भवति । तन्माहात्म्यस्य केनापि खंडयितुमशक्यत्वात् । गुणरित्रण स्वपरपराभरकारमानाख्यदोषदोपनियपरिहरणलक्षणगुणपरिहीनेन । माणेण स्तब्धत्वमात्रेण | तम्माहात्म्यखंडनस्व येन केनापि कर्तुं शक्यत्वात् ।। उक्तं च--
से मानी कुरुते दोषमपमानकर न यः॥
न कुर्वाणः पुननिमपमानवित्रर्थकम ॥ अर्थ-जो पुरुष अपमानका कारण ऐसे दोषका त्याग करता है और हमेशा दोपरहिन प्रवृत्ति रखता है उसको ही मानी समझना योग्य है. गुणरहित होनेपर भी मान करनेसे कोई मानी नहीं माना जासकता है.
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इह य परत्तय लोए दोसे बहुगे य आवहदि माणो ॥ इदि अप्पणो गणित्ता माणरस विणिग्गहं कुज्जा ॥ १४३० ॥ द्वितयलोकभयंकरमुत्तमो विविधदुःखशिलाततदुर्गमम् ।। प्रबलमार्दववायिघाततो मयति माननगं शतखंडनम् ॥ १४८७ ।।
इति माननिर्जयः ।। विजयोव्या-रह य परसय जन्मलो दोपबहनापति मानमिति विगणय्य माननिग्रहं कुर्यात्साधुजनः॥ मूलारा---पष्टम । माननिर्जयः।।
अर्थ--इस जन्ममें और परजन्ममें यह मानकषाय बहुत दोपोंको उत्पन्न करता है. ऐसा जानकर RI सत्पुरुप मानका निग्रह करते हैं. अर्थात् मानका त्याग करते हैं. मायाप्रतिपक्षपरिणामस्वरूपं निगदति--
अदिगूहिदा वि दोसा जणेण कालंतरेण णज्जति ॥ मायाए पउत्ताए को इत्थ गुणो हबदि लद्धो ॥ १४३१ ॥
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