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आश्वाप्स:
मूलाराधना १३१७
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मुलारा-सवं रूपं तयोग्यादिद्रियमा कामिन्यारिपुदलद्रव्यं । संकप्पषिसेसेण शुभाशुभाकारोलेखिमानसाध्यवसायपारवश्येनैव । जग बहिरात्मप्राणिगणे । सामान्य द्रियनिर्जयः ।
ये पुद्गल पदार्थ सुखके साधक हैं अतः इनमें मेरा अनुराग है और अन्य पुद्गल दुःखके साधन होनेसे उन से मैं द्वेष करता हूं ऐसा कहना भी योग्य नहीं है. शुभाशुभ रूप पुद्गल न दुःखके न सुखके साधन हैं. परन्तु तेरा संकल्प ही सुख और दुःखका साधन है ऐसा आचार्य कहते हैं
. अर्थ--शुभ रूप अथवा अशुभ रूप सुखका अथवा दुःखका उत्पादक नहीं है. परंतु हे आस्मन् ! संकल्प से ही सुख और दुःख होता है.
इह य परत्त य लोए दोसे बहुगे य आवहइ चक्खू ।। इदि अप्पणो गणित्ता णिज्जेदवो वदि चक्खू ॥ १४१८॥ विदधाति यतश्चक्षुर्महादोषमनिर्जितम् ।।
निजैतन्यं ततः सद्भिः सर्वथा तदतंद्रितैः ॥ १४७४ ।। . विजयोदया-दह य परत्त व जन्मद्वयेऽपि बहुदोषानावद्दति चक्षुरिस्यात्मनाचगणय्य निर्जेतव्यं चक्षुः॥
___ अधुना लोकद्वयबहुदोघे बहुत्वभावनायेंन्द्रियविशेषनिर्जय गाथाद्वयेन व्यावर्णयिष्यन्नादावलिदुर्जयतमत्वाचक्षुषो निर्जये नियुक्त
मूलारा-णिजेदव्यो श्रोत्रादिभ्योऽतिशयेन निमासम् ॥
अर्थ-इहलोकमें और परलोकमें चक्षुरिद्रिय अनेक दोषोंको उत्पम करता है ऐसा जानकर चक्षुरिन्द्रिय पर विजय प्राप्त करलेना चाहिये.
एवं सम्मं सहरसगंधफासे वियारयित्ताणं || सेसाणि इंदियाणि विणिज्जेदवाणि बुद्धिमदा ॥ १४१९ ॥ शब्दगंधरसस्पर्शगोचरापयपि यत्नतः ॥ जेतव्यानि एपीकाणि योगिना शमभागिना ॥१५७५ ॥