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मूलाराधना
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और भी उपाय बतलाते हैं. --
अर्थ -- मैंने पूर्व जन्म में दूसरोंको दुःख देकर पापबंध कर लिया था. पाप आनेका कारण नहीं जानते हुए इस प्रमादी मनुष्यने मेरा पाप अप उदयावस्थामें लाया है. अतः मैं इस ऋणसे आज मुक्त हो रहा हूँ ऐसा विचार कर दुःख देनेवालों पर क्षमा धारण करनी चाहिये. अर्थात् कोपको अपने मनसे हटाना चाहिये.
पुयंकाले गाइ सि एवं ॥
को धारणीओ धणियस्स दितओ दुक्खिओ होज्ज || १४२५ ॥ अनुभुक्तं स्वयं यावत्काले न्यायेन तत्समम् ॥
अधमर्णस्य किं दुःखमुत्तमर्णाय यच्छतः ॥ १४८२ ।।
विजयोदयापुत्रं यमुषमुत्तं पूर्व स्वयमेव भुक्तं, अवधिकाले प्राप्ते । गायेण नीत्या । इत्र्यं अधमर्ण उत्तमर्णाय को दुःखं करोति ॥
पूर्वजन्मनि परेदीरितं तद्विराधनोपार्जितं पापमनुभवतो मे किं दु:खं स्यादधमणीय पूर्वमृणीकृत्य स्वयं मुक्तं द्रव्यं तावन्नावमेव यथा व्यवहारसवधिकाले प्राप्त दल इत्येवापकर्तरि दीयमानस्य कोपस्य निग्रहार्थमुपायांतरगुपदिशति-
मूकारा जारण धर्माचारेण । धारणिओ ऋणिकः ॥
अर्थ - जैसे साहुकारसे द्रव्य लाकर उसका उपभोग लिया परंतु उसका धन मर्यादा काल आनेपर भी लौटाया नहीं. परंतु अब धन लौटाने का समय यदि प्राप्त हुवा है तो अवश्य साहुकारको उसका धन वापिस देना चाहिये. उसका धन उसको देने में कोन दुःख करेगा. वैसे इस मनुष्यको पूर्व जन्ममें दुःख देकर पापोपार्जन किया था. अब यह मेरेको दुःख दे रहा है यह योग्य ही हैं. इसने दिया हुवा दुःख मैं यदि शांत भावसे सहन करूंगा तो मेरा पापकर्म सब नष्ट हो जायगा. मैं इस पाप ऋणसे रहित होकर सुखी होउंगा ऐसा विचार कर रोष नहीं करना चाहिये.
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आश्वास
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