________________
बुलाराधना १३१०
गम्यमानो वासिताविशालजयनस्पर्शनोपनीत प्रीतिदकलो विवेतनो रागलविमिरपटला गुंतलोचनो महति गर्ने निपतितः परं व्यसनमवगाहते। मच्छो मत्स्यः युवजनमनः सरोनपायि विलासिनीविटोचनविभ्रमविलंबनोद्यतः स्वल्पाहाररसलोलुप विषवमाश्ववशः प्रशति । विचित्रसुरभिप्रसूनप्रकररजोऽकूरागो भ्रमरः । चिपपाकुसुमगंधनापस प्रियतमप्राणो भवति । एवमेते दोषान्प्रापिताः ॥
इंद्रिय विशेषदोषान्याधा सप्तकेन व्याचिख्यासुरेकैकस्यापीन्द्रियविषयस्थ सेवायां मरणांतचिपदः संपर्यंते किं पुनः पंचानामिति गाथाद्वयेन दृष्ट्रांतस्फुटमाचष्टे -
मूलारा -- पाविदो प्रापितः । दोसे मरणाव सानदुःखानि ॥
" एकेक इंद्रियोंके वश होकर भृंग वगैरे प्राणिओंको दुःख प्राप्त हुआ है. परंतु मनुष्य प्राणीको पंचेंद्रिय विषयपटता से क्यों न दुःख प्राप्त होगा ? अर्थात् इन पंचेंद्रिय विषयोंसे अवश्य अनेक अनर्थ प्राप्त होते हैं. इसी विषयका विवेचन
अर्थ --- शब्द सुनकर हरिण मरण कष्टको प्राप्त होते हैं. हरिण जंगलमें केवल मुखके वाष्पसे भी टूट सके ऐसा कोमल तृण खाकर और मृदु वायुके शैत्य स्पर्शसे ठंडे पानीका स्थान जानकर वहांका स्फटिक तुल्य निर्मल पानी पीकर पृष्ट होता है. अंतःकरणके समान वेगसे दौडनेवाला यह हरिण जब व्याधका गायन सुनता है तब सुखसे आखें मीचकर खडा हो जाता है. दुष्ट यमके दाढाके समान तीक्ष्ण और विशाल वाणपंक्ति से शरीर भिन्न होने पर वह अपने अत्यंत प्रिय प्राणोंको छोड़ देता है.
हस्ती स्पर्शनेंद्रिय वश होकर अतिशय दुःखको प्राप्त होता है. विलासिनी खीके हृदयंके समान प्रवेश करने में अशक्य, संसारके समान विस्तृत विपत्तीके समान दुर्लभ्य ऐसे अरण्यों में सल्लकी के वृक्षोंके कोमल पोंका और शाखाओं का आहार बनहाथी करता है. सुंदर पर्वतोंपरसे बहनेवाली नदियोंके अगाध न्हदमें स्वच्छंदसे पानी पीना, स्वेच्छासे मज्जन करना इन बातों से वह प्रसन्न होता है- अनुकूल अनेक हथिनीओंके साथ विहार करता है. तरुण हथिनीके विशालजघनका स्पर्शन करनेसे वह उन्मत्त होकर अचेतनसा होता है. रागरूप गाढांधकारसे उसके नेत्र सुंद जाते तब वह महान में गिरकर अतिशय संकट को प्राप्त होता है.
मत्स्य भी रसनेंद्रिय वश होकर प्राणोंको छोड़ बैठता है. सुंदर स्त्रियोंके विशाल लोचनके विभ्रमका
आश्वास
६
१३१०