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मूलाराधना
आश्वास
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मूलारा-सरऊए सरयूसहितायां नयां । गंधमित्तो गंधमित्रो नाम राजा । विणीदार अयोध्यायाः स्वामी । विसपुष्कगंध ज्येष्ठभानुप्रयुक्तरौद्रविधरजोवासितसुरभिसमकुसुमगंधं । अग्याय सिधित्वा । संपत्तो गतस्तीविषयरागाजितदुष्कृतपाकोद्रेकेण ॥
(तिर्यचोंके दुःखका वर्णन कर अब मनुष्य गतिमें विषयरागसे उत्पन्न हुये दुःखका वर्णन करते है--
अर्थ-इस प्रकार शब्द, रस, स्पर्श, मंध और रूप ऐसे पांच विषयोंसे हरिण, मत्स्य, भ्रमर, और पतंग ऐसे तियेच प्राणोंसे रहित होगये हैं. परंतु जो पांचोहि विषयोंका सेवन करता है ऐसा मनुष्य क्यों न प्राण मुक्त हो जायेगा।
अर्थ--विनीता नगरी में गधमिन नामक राजा घ्राणेंद्रियके वश होकर विपगंध पुष्प को संपकर मर गया और नरकमें उत्पन हुआ. तीव्र विषयरागसे कर्मबंध होकर यह राजा नरकमें उत्पन्न हुआ. )
पाइलिपुत्ते पंचालगीदसहेण मुच्छिदा सती ॥ पासादादो पडिदा गठ्ठा गंधव्वदत्सा वि ।। ११५६ ॥ मूर्षिछता पाटलीपुत्रे अव्यपंचालगीतितः ।।
मृता गंधर्वदत्तापि प्रासादात्पतिता सती ।। १४०६ ॥ विजयोदया-पाटलिपुत्रे पांचालस्य गीतशब्देन मूर्छिता सती प्रासादात्पतिता नश गंधर्वदत्ता नामधेया गणिका ।
मुलारा---पांचाल गायनोपाध्यायनामेदं । गंधर्वदत्ता गणिकानामेदम् ॥
अर्थ-पाटलिपुत्रनगरमें पांचालनामक गायनाचार्यका गाना सुनकर गंधर्व दत्ता नामक वेश्या मृञ्छित होगई और प्रासादसे गिरकर भरगई.)
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माणुसमंसपसतो कंपिल्लवदी तथैव भीमो वि ॥ रज्जम्भट्टो णहो मदो य पच्छा गदो णिरयं ॥ १३५७ ॥