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मृलाराधना
अर्थ-जैसे कोई ऋद्ध मनुष्य दूसरोंका पात करनेके हेतुसे अग्निसे तापा हुआ लोहा हाथमें लेता है गुमशाहीवी इध राप अमितत लोह पिंडसे दग्ध होगा या नहीं भी.
आश्वास
तध रोसेण सयं पुवमेव डज्झदि हु कलकलेणेव ॥ अण्णस्स पुणो दुक्खं करिज्ज रुठो ण य करिज्जा ॥ १३६३ ॥ विदधानस्तथा कोपं परधाताय मूढधीः ।।
स्वयं निहन्यते पूर्वमन्यातो विकल्प्यते ॥ १४१६ ।। विजयोदया-तध रोसेण तथा रोषेप स्वयं पूर्व वखते द्रवीकृत लोहसंस्थानीयेन । अन्यस्य पुनर्दुःखं कुर्यान वारुष्ट
मूलारा---- कल फलेणेव ताम्रद्रवेण यथा ।।
अर्थ-- तप्त लोहेके समान कोधी मनुष्य प्रथम स्वयं संतप्त होता है तदनंतर वह अन्य पुरुषको दुःखित कर सकेगा अथवा नहीं भी. नियमपूर्वक दुःखित करना इसके हाथ नहीं है. जिसके ऊपर हम रोष करते है उसके शुभ कर्मका उदय होगा तो हम उसका बाल भी बांका नहीं कर सकते हैं.
पासेदूर्ण कसायं अग्गी वासदि सयं जधा पच्छा ।। णासेदूण तध णरं णिरासवो णस्सदे कोधो ।। १३६४ ॥ कोधो सत्तुगुणकरो णीयाणं अप्पणो य मण्णुकरो ।। परिभवको सवासे रोसे गासेदि परमवसं ।। १५६५ ॥
आधारं पुरुषं हत्वा पापः कोपः पलायते॥ . प्रदा जनकं काष्टं वन्हिः किं नोपशाम्पति ।। १४१७॥ शपकाराद्रोषो यः स्वबंधूनां च शोककृत् ॥ स्थानं कुलं बलं मोध हत्या नाशयते नरम् ॥ १४१८ ॥
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