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लाराधना
आभासः
गाणंपि कुणदि दोमे णरस्स इंदियकसायदोसेण ।। आहारो वि हु पाणो णरस्स विससंजुदो हरदि ॥ १३३८ ।। दोषाय जायते ज्ञानं कषायेंद्रियषितम् ।।
आहारी हरते किं न जीवितं चिषमिश्रितम् ॥ १३८६ ।। विजयोदया-जाणवि कुणदि दोसे परस्स शान दोवानपि करोति नरस्य । दियकसायदोसेण द्रियकरायपरिणामदोषेण ! उपकार्यपि अनुपकारितामुवति परसंसर्गेण । यथा प्राणघारणानिमितोऽप्याहारो विषमिश्रः पाणाविनाशयति ।
मूलारा-दोसे अपकारान् ।।
अर्थ-इंद्रिय क.पायरूपी परिणाम दोपोंसे पुरुषका जान भी दोषों को उत्पन्न करता है, यद्यपि ज्ञान उपकार करनेवाली चीज है परंतु दूसरेके अर्थात् सदोषके संसर्गसे दोष उत्पन्न करता है. जैसे अभसे प्राण पारण होता है परंतु यह विषसंयुक्त होकर प्राणोंका नाश कर देता है.
जाणं करेदि पुरिसरस गुणे इंदियकसायविजयेण || बलरूबवण्णमाऊ करेहि जुत्तो जधाहारो ॥ १३३९ ॥ विदधाति गुणं ज्ञानं कषायेंद्रियवर्जितम् ॥
वपुपोंग्यं करोत्यन्नं बलवर्णादिसुंदरम् ॥ १३८७ ॥ विजयोदया--जाणं करेदि शानं करोति। पुरिस रस गुणे पुरुषस्य गुणान् । कथं ? इंदियकसायविजपण इंद्रिय कपायविजयेन बलच पण रुपमाऊ करेविलं.रूपं, तेजः, आयुश करोति । जुत्तो जधाहारो युरुः शोभनो यथाहारः ।। थियेणामिश्रितः ।
मूलारा-वण तेजः। जुत्तो विहितः ।।
अर्थ-इंद्रियां और कपायोंको जीतकर ज्ञान मनुष्य गुण पैदा करता है. जिसमें विष मिश्रण नहीं हुआ है ऐसा उत्तम आहार पल, वीर्य, रूप, पराक्रम और आयुको बढाता है.
தாமாககககககக்கான
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