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मूलागवना
आश्वासः
अर्थ-यथेच्छ प्रवृत्ति करनेवाले उस मान गनिने यद्यपि यो संगम मालकिला होगा तथापि उसका संयम चारित्र नहीं कहा जाता है. क्योंकि उसको सम्यग्दर्शन नहीं है: 'सम्यग्दर्शनके साथ संयमको ही सम्पचारित्र कहते हैं. स्वच्छंदवृत्ति मुनि अपने ममोनुकूल तश्वकल्पना करता है, आमाविरुद्ध कल्पना करनेसे वह सम्यग्दरष्टि नहीं है. सम्यग्दर्शन के बिना उसको चारित्रकी प्राप्ति कैसे होगी?
इंदियकसायगुरुगक्षणेण सुत्तं पमाणमकरतो ।। परिमाणेदि जिणुते अत्थे सच्छंददो चेव ॥ १३१२ ॥ जिनेंद्रभाषितं सध्यं कषायाक्षगुरुकृतः ॥ प्रमाणीकुरुते वाक्यं यथा दो न दुर्मनाः ॥ ३५७ ॥
(इति स्वच्छदः) विजयदया हदियकसायगुरुगसणेण कषायाक्ष रुकृतत्वेन सुत्रमप्रमाणयन् , परिमाणेनि अन्याशा गृहानि जिणुले अन्धे जिरोक्तामर्थान् , सच्छंददो चेब स्वेच्छानिमायेणैव ॥ जधान ॥
गलारा-परिमाणदि अन्यथा ग्रहाति चितयतीत्यन्यः । अत् जीयादिपदार्थान् । सकछंददो चेत्र स्वाभिप्रायेणेत्र यथाछंदः ॥
अर्थ-इंद्रिय और कषायोंमें अत्पंत आधीन होनस यह भ्रष्ट मुनि जिनप्रणीत सिद्धांतको प्रमाण नहीं मानता है और स्वच्छंदचारी बनकर सिद्धांतका स्वरूप अन्यथा समझता है और अन्यथा विचारमें लाता है.
इदियकसायदोसेहिं अधधा सामण्णजोगपरितंतो ।। जो उन्बायदि सो होदि णियत्तो साधुमस्थादो ॥ १३१३ ॥ कषायोन्द्रियदोषेण वृत्तात् सामान्ययोगतः॥ यः प्रभ्रष्टः परिधानतः स भ्रष्टः साघुसार्थतः॥ १३५८ ।।