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मूलानाधा
আগ্ৰাম
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थाहभएण पलादो जूई दठूण वागुरापडिदं ॥ मयमेव मओ वागुरमदीदि जह जूहतहाए ।। १३१९ ॥ बिहाय हारेणो युधं व्याधभीतः पलायितः ।।
स्वयं मया पानि चागुरो यूथतृष्णया ।। १३६४ ।। विजयोववा-याहमण व्याधमयेन । पलादो मगो कृतपलायनो मृगः । बागुराडद जूई दट्टण दागुरापतित स्वयुधं दृष्ट्वा । लयमेष घागुरमदीदि मनो स्वयमेव वागुरी प्राविशति मृगः, जल यथा, कुतः, जूहप्तण्डाए यूथतृष्णाया, पर्व को विगिहवास मुधा इत्यगन्या गाधया संबंधःकार्यः॥
भव्योऽपि जनो गुरूपदेशाधिगतदुःखमिवृत्युगयतया परित्यक्तेंद्रियकरायो जिनदी प्रतिपद्यापि चिसभ्यस्तकपायेंद्रियदोषावेशवशात्पुनरपि गृहषासदोषानेवापततीत्येतद्दष्टांतपट्कनुभगं गाथासप्रफेन स्फुटय लि
मुलारा--पलाओ कृतपलायनः । मओ मृगः । अदीदि प्रविशति ।। ____ अर्ध-पारधीके मयसे भागा हुआ हरिण जालमें अपना मृगसमूह पटा हुआ देखकर स्वयं भी जालमें प्रवेश करता है. मृगसमूहमें उसका प्रेम रहता है. प्रेमवश होकर वह स्वयं बंधन में पड़ता है. वैसे कोई गृहस्थावस्थाका त्याग कर पुनरपि उसका स्वीकार करता है.
पंजरमुको सउणो सुइरं आरामए सुविहरतो . • सयमेव पुणो पंजरमदीदि जब पीडतहाए ।। १३२० ॥ . आरामे विचरन्स्थेच्छ पतची पंजरच्युतः ॥
यथा पासि पुनर्मूढः पंजरं नीतष्णया ॥ १३०८ ॥ विजयोदया-जरमुको सउणो पंजरान्मुक्तः पक्षी । सुदरं आरामए सुविहरतो आरामेषु स्वेच्छषा विहरन । सयमेष स्वयंमव । पुणो पुनः । पंजरमदीदि पंजरमुपैति, जद्द नीइताहाप यथा नोडतया ||
मूलारा-सइरं स्वेच्छया । पीडतण्हाए स्वावासलाभेन ॥
अर्थ-पिंजरसे मुक्त हुधा यक्षी उद्यानमें-बगीचम दीर्घ काल स्वेच्छास घूम कर जैसे अपने घरकी अभि लापासे पुनरपि पिंजेरमें आता है, वैसे यह मुनि भी गृहस्थावस्थाका त्याग कर पुनः उसका स्वीकार करता है.