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मूलाराधना
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अर्थ — देवो में और मनुष्यों में प्राप्त होनेवाले भोगोंकी अभिलाषा करना यह भोगकृत निदान है, श्रीपना, धनिकपना, श्रेष्ठिपद, सार्थवाहपना अर्थात् सब व्यापारिओंका स्वामित्व, केशवपद-नारायणपदवी, सकलचक्रadve इनकी भोगोंके लिये अभिलाषा करना यह भोगनिदान है.
संजमसिहरारूढो घोरतवपरमो तिगुत्तो वि ||
पगरिज जइ विदाणं सोविय इ दीहसंसारं ॥ १२२० || वृद्धसंयमतः पराक्रमः शुद्धगुतिकरणोऽपि ना ततः ॥
याति जन्मजलधिं सुदुस्तरं कापरस्य गणना कुचेतसः ।। १२६१ ।।
विजयोदया -- संजय सिहरारू संयमः शिखरमिव दुरारोहत्वाचलत्वाद्वा । एतदुक्तं भवति । प्रकृष्टसंश्रीरतपरमो धोरे तपसि पराक्रम साहो यस्य सोऽपि दुर्धरतपोऽनुष्ठाय्यपि । तिगुत्तो वि गुप्तिषयसमन्वि जज शिक्षणं निदानं यदि कुर्यात् । चंद्र वर्धयति संसारमात्मनः । किमपरस्मिनिदानकारिणि वाच्यम् ॥ जिनेंद्र प्रायस्यापि निदानकरणे संसारदीचं कारणमाह
मूलारा - संजम सिहारूढो संयमः शिखरमिव दुरारोहस्वाद चलस्वाद्वा । तदारूतः संयमकाष्ठानिष्ठ इत्यर्थः । घोरत परक्कमो दुष्करे सपस्युत्साहो यस्याली ॥
अर्थ- जैसे पर्वतका शिखर निश्चल और चढकर ऊपर जानेके लिये कठिन है वैसे उत्कृष्ट संयम भी धारण करना कठिन है. ऐसा उत्कृष्ट संगम जिसने धारण किया है, घोर तपमें जो उत्साहयुक्त है अर्थात् जो दुबेर तपश्चरण करने में तत्पर रहता है जो तीन गुमिओंका धारक है ऐसा भी मुनि निदान करेगा तो वह भी संसारको पावेगा अर्थात् उसको भी संसार में दीर्घकाल तक भ्रमण करना पडेगा. तो अन्य निदान करनेवाले क्षुद्र मनुष्यको संसार में घूमना पडेगाही.
यमो ऽपि। तोऽपि
जो अपसुक्खदुं कुणइ णिदाणमविगणियपरमसुहं ॥ सो कागणी विक्रेइ मणि बहुकोडियमोल्लं । १२२१ ||
आश्र
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