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मृलागधना
आश्वासः
प्रशस्त निदानं वक्ति
मूलारा-सत्त उत्साहः । बलं देहवाद । सायअर्थधुकुलादि अस्ट्रिकुलं, बंकुलं, सुजात्यादिकं च । पुंस्वादीनि संघमायनिच्छत; निपान ,दिति राजधः .
अर्थ-पुरुषत्व अर्थात् उत्साह. शारीरिकबल, वीर्यातरायकर्मका क्षयोपशम होनेसे उत्पन्न होनेवाला दृद्ध परिणाम, अस्थिबंधन अर्थात् क्जयुषभनाराचादिकसंहनन, ये सत्र संयमसाधक सामग्री मेरेको प्राप्त हो ऐसी मनकी एकाग्रता होती है उसको प्रशस्तनिदान कहते हैं, धनिककुलमें, बंधुओंके कुलम उत्पन्न होनेका निदान करना प्रशस्त निदान है.
अप्रशस्तनिवानमाचणे
माणेण जाइकलरूबमादि आइरियगणधरजिणतं ॥ सोमम्गाणादेयं पत्थंतो अप्पसत्थं तु ॥ १२१७ ।। अहंद्गणधराचार्यमुभगादेयतादिकं ।।
प्रोक्तं प्रार्थयते शास्तं मानन भववधकाम ।। १२ । विजयोट्या-मायण माकन तुना जाति जुलरूवमादि जानिर्मातृवंशः, कुल चितवंशः, जातिकुलरूपमात्रस्य सुलभाचारप्रशस्तजात्याड़िपनिग्रहः । भारियनगरजिनल आचार्य, गणधरत्वं । जिनत्यं. मोभम्गाणविजं सौ. भाग्य. आय. सदिय च । धेच्छलो प्रार्थयतः। अप्रशस्तन निदानशनकषायविन्यात् ।।
अमझातन्निदानमाह
मूदाग-गाणे अभिमानवशेन । आदिकुलस्वमार प्रशमं मातापितृकुलं । नौरूप्यं दी बारह माय । अम्माबम्ब मुलभत्यात । लोभग्गागादे सौभाग्यमाज्ञामादेयवान मनां वा। पछेतो प्रार्थचनः । अप्पसत्य मानकषायदूधिनत्यान् ।।
अर्थ-आभिमानके वश होकर उत्तम सानुवंश, उत्तम पितृवंश, अर्थात प्रशस्त जाति और प्रशस्त कुल, रूप इसकी आभिलाषा करना: आचार्य पदवी, गणधर पद. तीर्थकरपद, सौभाग्य, आज्ञा और सुंदरपना इनकी प्रार्थना करना यह सब अप्रशस्त निदान है। क्यों कि मानकायले दषित होकर उपर्युक्त अवस्थाकी आभिलाषा की जाती है.
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