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मृलाराधना
आवास
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एतेषां चिंतनान्मामो बधते सर्वदाग्निवत् ।। संसारबद्धकः सद्यो हीयते तत्वचिंतन ॥ १२७५ ।। उरुचत्वादिनिदानेऽपि संसारं लभते यदि ॥
सदा बधनिदानगी भत्रभााति का कथा ।। १२८० ॥ विजयोदया-जइदा यदि साम्यत् । उच्चसादिणिदाग उच्चंगाचता, पुरुप, स्थिरशरीरता, भदरिद्र कुलप्रसूतियधुतल्यवमानिक मुक्तः परंपरया कारणमपि चित्ते क्रियमाणमपि संसारबट्टण होदि संसारवृद्धि करोति । किध ण करिस्सदि कथं न करिष्यति । दीहलेसारं दीर्घसंसार रमणिदाणं पायो कि
उच्चत्वनीचत्वादितथाविधचितनाचिंतनभवो मानसद्भावाभादौ इत्यनुशास्तिमूलारा--पस्सदो चिसयतः । एतां श्रीविजयो मेरछति ।। परवधनिदान सुतरां द्वापयति संसारमित्याचष्टे--- मूलारा---उमरखपुरुषत्वादिकं मुक्तः परंपरया कारणमपि तन्मे भूयादित्याशास्यमानं ।।
अर्थ-जो पुरुष उपयुक्त वाताफों विचार नहीं करते है वे गर्वसे मानकषायसे युक्त होकर दुःख पाते हैं. परंतु जो इनका विचार करते हैं अर्थात् मानसे होनेवाली हानिओंका विचार करते हैं वे मानसे दूर रहकर सुखी I होजाते हैं.
उच्चारमें जन्म होना, पुरुषत्व, द्ध शरीरपना, श्रीमंत कुलमें जन्म होना इत्यादिक बाते यद्यपि मोक्ष प्राप्तीम परंपरासे कारण हैं तो भी इनकी प्राप्ति मेरे को हो ऐसी अभिलाषा करनेसे संसार वृद्धि के लिये कारण हो जाती हैं. तो दूसरे का वध करनेका निदान-अभिलाषा क्यों संसारवर्धक न होगा.
आचार्षगणधरत्याविप्रार्थना कथमशोभना रत्नत्रयामिशयलाभप्राधिना हि सत्याशंकायामुन्यो
आयरियत्तादिणिदाणे वि कदे णस्थि तरस तम्मि भवे ।। धणिदं पि संजमंतस्स सिझणं माणदोसेण ॥ १२४०॥ निदानेऽपि कुलादीनि जायते नात्र जन्मनि ।। संयम विदधानस्य मानिनो यातना परा ॥ १२८१ ।।