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मूलार बना।
__प्रदाप · संज्वलन कपायों का नीय परिणमन होना अर्थात् उनका तीब्र उदय होना. पानीक ऊपरकी लकीर, अलि के ऊपरकी हकीर, जमीनक ऊपरकी लकीर, और पत्थर पर उकारी हुई लकार हन के समान क्रोधक चार प्रकार है. इस प्रकारसे गान, गाय, लोभक भी दृष्टांत शास्त्रांतर से समझ लेना चाहिये. इनम होनेवाले अनिचारों को पदोपानिचार कहत है.
मीमांसा-अपना बल और दुसरका बल इसमें कम और ज्यादा किसका है इसकी परीक्षा करना इससे होनेवाले अतिचारको मीमांसातिचार कहते हैं. फेले हुए हाथको समेट लेना.कुचिः
सन भएको होस समाकर सज्ज करना, पत्थर फेकना, माटीका डेला फेंकना, बाधा देना, मर्यादा-बाडको उलंघना, कंटकादिकोंको लांधकर गमन करना पशु, सर्प गरह प्राणिओंको मंत्र की परीक्षा करने के लये पकडना, और सामर्थ्यकी परीक्षा करने के लिये अंजन और चूर्णको प्रयोग करना. द्रव्योंको मयोग कर बस और एकेंद्रियों की उत्पत्ति होती है या नहीं इसकी परीक्षा करना इन कृत्यों को परीक्षा कहते हैं. ऐसे कृत्य करनमे व्रतोंमें दोप उत्पन्न होते हैं.
अज्ञानातिचार-अज्ञ जीवोंका आचरण देखकर स्वयं भी चैसा आचरण करना, उसमें क्या दोप है इसका ज्ञान न होना, अथवा अज्ञानीके लाय, उद्गमादि दोषोंसे सहित ऐसे उपकरणादिकों का सेवन करना ऐसे अमानसे अतिचार उत्पन्न होते है.
__ शरीर, उपकरण, वसतिका, कुल, गांव, नगर देश, पंधु और पाश्वस्थान इनमें ये मेरे हैं एसा भाव उत्पन्न होना इसको स्नह कहते हैं. इससे उत्पन्न हुए दोषोंको स्नेहातिचार कहते हैं. यह ठंडी हवा मेरे शरीरको पीहा देनी है ऐसा विचारकर चटाईमे उसको ढकना, अग्नीका सेवन करना, ग्रीष्म ऋतुका ताप मिटानेके लिये वनग्रहण करना, बटन लगाना. साफ करना. तेलादिकांसे कर्मडलु वगैरह पदार्थ स्वच्छ करना, धोना. उपकरण नाट होमा इस भयन उसको अपने उपयोग न लाना, जैम पिच्छिका झड जापगी दम भयम उपग जमीन, शीर, पुस्तकादिक साफ न करना. इत्यादिक अनिनाराको उपचारातिचार यह संज्ञा है.
वसतिका का तण काई पशु खाता होगा तो उसका निवारण करना, वसानका मन होती हो नो उसका निवारण करना, बहोतसे यति मेरी वसतिका में नहीं ठहर सकते है ऐसा भाषण करना बहुत मुनि प्रवेश करने