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मूलारावना ११९७
वसतिका का स्वीकार करते हैं. वे मुनि एषणासमितीको निरतीचार पालते हैं ऐसा समझना चाहिये. श्रीविजयोदया नामकी दशबैकालिक टीकामें उमादि दोषोंका सविस्तर विवेचन अपराजित सूरीने किया है अत एव यहां उसका निरूपण करना वे नहीं चाहते हैं.
आदाननिक्षेपणनिरूपणार्थ गाथा
सहसाणा भोगिददुप्पमज्जिय अपच्चवेसणा दोसो
परिमाणम्स हते समिदी आदाणणिक्खेवो ॥ ११९८ ॥
सहसादृष्टदुर्दृष्टामत्यवेक्षण माचिनः ॥
भवत्यादाननिक्षेप समितितवर्तिनः ॥ १२३६ ।।
विजयोदया - सहसणाभोगिद आलोकनप्रमार्जनमकृत्वा आदानं निक्षेप इत्येको भंगः । अनालोक्य प्रमार्जनं कृत्या आदामं निक्षेपो येति द्वितीयो भंगः आलोक्य दुःप्रमृष्ट इति तृतीयः । आलोकितं प्रमुं च न पुनरालोकितं च शुद्धं चेति चतुर्थी भेगः । एतद्दोषचतुष्टयं परिहरतो भवति आदाननिक्षेपण समितिः ।
आदाननिक्षेपसमिति लक्षयति
मूलारा - आलोकाप्रमार्जनेऽकृत्या पुस्तकादेरादानं, निक्षेप वा कुवैत एकः सहसायो दोष: । अनालोक्य प्रमार्जनं कृत्वा पुस्तकादेरादानं निक्षेप वा कुर्वतोऽनाभोगिताख्यो द्वितीयो दोषः । आलोक्ग्रामम्यकप्रतिलभ्य तद्गृहतोतिवादीयो दुष्प्रमृष्टसंज्ञो दोषः । आलोकित प्रसृष्टं च न पुनः शुद्धमशुद्ध चेति निरूपितमित्यादान निक्षेपकरणाच तुर्थीप्रणाल्यो दोष एतांस्त्यजत आदाननिक्षेपसमितिः स्यात् ॥
आदान निक्षेपका आचार्य निरूपण करते हैं.
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अर्थ - बिना देखे और बिना भूमि स्वच्छ किये पदार्थ उठा लेना, यह पहिला मंग हुआ. बिना देखे भूमि स्वच्छ करके पदार्थ जमीनपर रखना अथवा उठा लेना यह द्वितीय भंग है, देखकरके भूमि स्वच्छ किये बिना पदार्थ उठा लेना अथवा रखना यह तीसरा अंग है. देखना और थोडासा साद लेना यह चौथा भंग है इन चार दोयोंका त्याग कर पदार्थोंको उठा लेना और रखना शादान निक्षेपण समिति है अर्थात् जमीनको अच्छी तरहसे
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