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मूलाराधना!
भाषा
सुधागर्व खर्वन्त्यभिमुखहषीकप्रणयिनः ॥ क्षणं ये तेऽप्यूई विषमपवदंत्ययविषयाः ॥ त एवाविर्भय प्रतिचितधनायाः खलु तिरो
भवन्त्यधास्तेभ्योऽयह किमु कर्षन्ति विपदः ।। अर्थ- आशारूपी चेलीको जड नाना विनरूपी चूहोंके द्वारा काटी जा रही है इस बातको वह जानता ही नहीं. परंतु विषयसुखरूपी अल्प मधुके काका आस्वादन करनेमें ही वह लवलीन होरहा है. नत्र वगैरह इंद्रियोंक द्वारा जिनका ग्रहण होता है ऐसे रूप, रस, गंध स्पर्शादिकोंको विषय कहते हैं. ये विषय मधुके समान अल्प सुख उत्पन्न करनेमें निमित्त है. अतः इनको मधु कहते हैं. इनका बिंदु अर्थात् इन रूपादि पदार्थोके जो थोडेसे पुद्गलस्कर भोग में आते हैं उसको बिंदु कहते हैं. इस प्रकार अधुवतत्वका वर्णन हुआ..
• बालो अमेज्झलितो अमेझमझम्मि चेव 'जह रमदि । तह रमदिरो मुढो महिलामझ सयममेझो ॥१.६६ ।। रामावोंमध्यवर्ती मनुष्यः कीदत्येपोमध्यरूपः शिशुर्वा ।
वॉलिपोऽमध्यमध्यं प्रवृत्तो कीरक्सारं निंदनीयस्वभावं ॥ १.५" ॥ विजयोदया-यालो अमेज्मलितो कालोऽ अमध्येन लिप्तः । अमज्झमज्झम्मि त्रय अमेध्यमध्ये एव । जह ग्मद राधा रमते प्रीतिमुपैति । सधा रमदि णरो मूढो तशा रमते मूढः । महिलामेझे योषिदेव अनेकाशुचिपूर्णशरीरनया अमेध्यशंखनोच्यते । सयममंझो स्वयममध्यभूतः ॥
मकलाभिमतेंद्रियार्थनायके स्वीनानि बिपये यथावत्स्वरूपानुवादपरत्वेन जुगुम्मामुद्भावयन्स्वांगवत्तदंगान्मुमु क्षुमुपरमयितुं नाथाद्वय माह
गूलास -बालो इति--रमादि प्रीतिमुपैति । महिलामेज्य महिला अमेध्यमिव समस्ताशुचिप्राग्भारशरीरत्वात् ।।
अर्थ-विष्टासे लिप्स हुआ बालक जैसे विष्ठामें ही क्रीडा करता है उसमें सुख मानता है, वैसे अनेक अपवित्र पदार्थ जिसके शरीरमें भरे हुये हैं ऐसी खीरूपी विष्ठामें यह कामी अपवित्र पुरुष क्रीडा करता है.