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ROMASTERamera
मलारना
आश्वासः
११३६
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परो धन रष्ट्या गृहानाति मनिगूहनकरणमाया च भवति । पाणिलाभे कापोपण बालति । तलया कापणमहनादिकमिति लोभस्य हेतुर्दपलायः । निर्देविण लोको हेससीलि हासस्यापि कारणे । द्रव्यमात्मीयं पश्यतः तनानुरागो रतिः । तहिनाशे रतिः । तदन्ये दरंति इति भयं । शोको पा । जुगुप्सते या विरुप । परिप्रहपरिपादनाथ सावपि भुले। मदीयं भोजन परे दृष्टूपाधिनो भति इति मन्यमानः
मूलारा-क्रोधो अंथे परेण गृपमागे जायते । माणो धनाढ्योऽहमिति गर्वः । माया परो धन दृष्टं गुहाति अति तभिगृहनकरणायन । लोभो काकण्यादिलामे कापिणादि के काभतीति । द्रव्यलाभालोमः प्रवर्तते । हस्स हास्य धनिनो निर्धनं दृष्टवा हसतः स्यात् । रदि स्वधनं पश्यतस्तत्रानुरागः । अरदि धनविनाशे कश्चिदपि चित्तस्यानवस्थान । भय धनमन्य हरन्तीति भीतिः । सोगा शोको धनबिच्छेथे मनस्तापः । दुगुछ विरूपके परिग्रहे जुगुप्मा । धनार्थत्याद गुणिनामपि राजादिछंदानुवृत्या निवनं । रादिमत मदीयं भोजन दिया परे हरंतीति तद्रनाथ नक्तमुक्तिः । स्वाम्याविछंदा नुत्या पादून सौ मुतिः ।
अर्थ- परिग्रहवान मनुष्यको धन देते समय क्रोध आता है. परिग्रह पास होनेसे मैं धन्य हूं एसा अभिमात्र उत्पन्न होता है. मेरा धन देखकर अन्य पुरुष हरण करेगा इस विचारसे उसको छिपाता है. यह माया दोप है. काकणिका का लाभ होनेपर काषापाणका लाभ होनेको इच्छा करता है. वह भी मिलनेपर हजारो कार्षापणकी पाप्ति मर को कब होगी ऐमा विचार उसके मन में उत्पन्न होता है. अतः द्रव्य का लाभ हाना लोभका हेतु है. जो दरिद्री है उसको देखकर लाक हमन है. अनः यह धन हास्यका तु है अपने धनकी वारंवार दंग्यकर परिग्रहवान उमति -यामति करता है. उसका विनाया होनपर बह दुःखी होता है. मेराधन नुसर हरण करंग एगी भावना उत्पना होकर भय उत्पन्न होता है अथवा शोक भी उन्पा होता है. परिग्रहका रक्षण कानेके लिए वह रात में भी भोजन करता है. क्योंकि मैं यदि दिनमें भोजन करूंगा तो याचक लोग मांगंग एसी उसकी समझ रहती है.
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गंथो भयं जगणं सहोदरा एयरत्थजा जेते ।। अण्णोणं मारेढुं अत्थणिमित्तं मदिमकासी ॥ ११२८ ॥