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मृलागधना
आवासः
सीदुण्हादबादं वरिसं तण्हा छुहासमं पंथें ॥ दुसरोज दुज्झत्तं सहइ वहइ भारमवि गुरुयं ॥ ११३३ ॥ गावइ णच्चइ घावइ कसइ बबइ लवदि तह मलेइ गरी ॥ तुण्णदि विणादि जायदि कुलम्मि जादो विगंथत्थी ॥ ११३४ ॥ यर्थ यात क्षुधं सुरक्षा नापं शीतं अमं कम ॥ दर्भुक्त सहतेऽर्थार्थी भार वहति पुष्कलं ॥ ११६८ ॥ कषति दी यति सीव्यति विद्यते बपति पश्यति प्रस्पति याचन ।। धमति धावति बल्गति सवने सदनि ताम्यति मृत्यति गायते ॥ ११६९॥ पठति जल्पति लंगति लंपने हरति रुप्यति नश्यसि लिख्यति ।। रजति कस्यति दहति सिंचति मुहामि यंदते ॥ १.७० । श्वसिति रोदिति मायति लज्जते हसति तृष्यति दुप्यति त्यति ।
तुदति गृध्यति रज्यति सज्जते द्रविणलधापनाः कुरुते न किम् ॥ १९६१ विजयदया-गाननि गायति. नृत्यति, वात्रभिकाति, धपति, काणदातर कोति, गहनं करोनि. माव्यति, वयति. गावो कल जातीनिहा
नोऽर्धाय यदुन र निकादिक यागेनि नाम ... मूलागीमानयवाई शीतनपान । प्राय सहते प्रति संबंधः । एला संस्कृत टीकाकारो नेच्छति ।
मूलारा--कसदि कृपति । जायदि याचते __ अर्थ-दुत, ब्राह्मण, व्याघ, लोक, हाथी, गजपुत्र. पथिक, राजा, और सोनार इनकी कथायें तथावानर, नौला, चैद्य, त्रैल, तपस्थी. नवन, सर्प ऐसी सोला कथाओंका वर्णन श्रेणिक, पुराणमें आया है. श्रावकने मुनिराजको आठ कथा धन उन्होनेही ग्रहण किया है ऐसे अभिप्रायसे कही थी. अनंतर मुनिराजनेभी तेरा धन मैने नहीं ग्रहण किया है इस अभिमायको पुष्ट करने के लिये कही थी. इसके अनंतर श्रावक पुत्रने पिताका धनकलश लाकर दिया तब उसका संदेह दूर हो गया. यह मनुष्य परिग्रहार्थ गाता, है, नाचता है, इधर उधर दौडता है, स्वेत हाल
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वेसा वेळ तपस्वी नवन सर्व रेसी सोला काजीका वर्णन यणिकः पराणी आप जानन शनि ।