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मुकारापना
आश्वाम
करता है. व्यापार करता है, शिल्पकार्य करता है. परिग्रहों की प्राप्ति हो इस लिये निद्राका भी त्याग कर इन' कार्यों में रात दिन तत्पर होता है. परिग्रहके लोभसे यह मनुष्य संग्राममें-युद्धमें शस्त्रोंकी दृष्टि अपने छातीपर होने देता है. अर्थात युद्ध में हजारो पाणोंकी वर्षा होनेसे उत्पन्न हुये अघातोंको सह लेता है. जिसमें मगर-क्रूर जलजंतु विचरते हैं ऐसे भयानक समुद्र में भी यह प्रवेश करता है।
जदि सो तत्थ मरिज्जो गंथो भोगा य कस्स ते होज्ज ॥ महिलाविहिंसणिज्जो लूसिददेहो व सो होज्ज ॥ ११३७ ।। निधनमृच्छति तन्त्र यदेकको भवति कस्य तदा धनमर्जितम् ॥ विविधविघ्नविनाशितविग्रहो जनतयाखिलयापि जुगुप्सते ॥ ११७५ ।। लुनीते धुनीते पुनीने कृणीते न दत्ते न भुक्तेन शेते न बित्ते ।।
सदाचारवृत्तेर्षहिनचित्तो धनार्थी विधेयं विधत्ते निकृष्टम् ।। ११७६ ॥ विजयोदया-जदि सो तत्थ मरिजो यद्यसौ रामुख्ने मृतिमियात् । ग्रंथा भोगाश्च ने तावत्कस्य भषेयुः । बनिताभिनिधः पिनष्टकरचरणाद्यवयधो भवेषयपि न मुमः ।
__ मूलारा-तस्थ रणमुखादौ । ग्था अर्धाः । महिलाविहिसणिजो स्वीणा निंद्यः । मिददेहो खडखंडीकृतशरीर. गन । यदपि न भृतस्तथापि दुर्भगो भवेदिति भानः ।।
अर्थ- यदि यह प्राणी रणमें कालके गालमें चला गया तो सब परिग्रह और भोग पदार्थ किसके होंगे? । यदि युद्धमें वह नहीं मरा और हाथ, पाय वगैरह अंग टूटनेपर ऐसे मनुष्य की उसकी स्त्रिया निंदा करती हैं.
गंथणिमित्तमदीदिय गुहाओ भीमाओ तह य अडवीओ। गंथणिमित्तं कम्म कुणइ अकादब्वयपि जरो ॥ ११३८ ॥ गिरिकदरदुर्गाणि भीषणानि विगाहते ।। अकृत्यमपि वित्ता कुरुते कर्म मृढधीः ॥ ११७७ ।।