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लाराधना
आश्वासः
अर्थ-जिसने परिग्रहोंका त्याग किया है वह सर्वत्र लघु होता है अर्थात् चिंतारहित होता है. उसके स्वरूपको देखकरही लोग उसके ऊपर विश्वास करते हैं. परंतु जिसके पास वस्त्र प्रावरणादिक हैं उसके ऊपर लोक विश्वास नहीं करते हैं. इसने अपने पास शस्त्र छिपाकर रक्खा होगा ऐसा समझते हैं. तथा यह हमारा धन बसमें छिपाकर ले जायगा ऐसी शंका उनके मनमें उत्पन्न होती. अभिप्राय यह है कि परिग्रह अविश्वासका कारण है.
सव्वस्थ अध्यवानिया मिरसमो मिओ य सम्वत्थ ॥ होदि य णिप्परियम्मो णिप्पडिकम्मो य सम्वत्थ ॥११७७ ॥ प्रतिबंधप्रतीकारप्रतिकर्मभयादयः ॥
निग्रंथस्य न जायते दोषाः संसारहेतवः ॥ १२१५ ।। विजयो-सम्वत्थ अप्पवसिगो सर्वत्र प्राम, नगरे, अरण्ये व आत्मवशकः । णिस्संगो निष्परिग्रहः । सव्वस्थ य णिमओ सर्वत्र निर्भया होदिय णिप्परिकम्मो भवति च निर्मापार रुप्यादिक्रियाघारंभरहितः । णिप्पडिकम्मा य इदं पूर्वकृत इदं परत्रावशिष्ट कार्यमित्येतच्चास्य न विंधते ।।
नि:संगस्य स्वातंत्र्यनिर्भषश्वानारंभत्वनिश्चितत्वंगुणसंपत्तिमार--
मूलारा--णिपरियम्मो परिकर्मभ्यः कृष्यादिव्यापारेभ्यो निष्कांवः । णिप्पडियम्मो इदं पूर्व कृतं, इई इवानी करोमीवं च पुरस्तात्करिष्यामि इत्येवमादिक आत्मनि चिंतासंस्कारोऽत्र प्रतिकर्म तस्मानिष्कान्तो निष्प्रतिकर्मा । अन्ये तु णिप्पडियम्मो यतिः । णिपडियम्मो निर्व्यापार इति व्याख्यान्ति ॥
अर्थ-निष्परिग्रही मनुष्य गांवमें, नगरमें, अरण्यमें, सर्व स्थानाम अपने स्वाधीनही रहता है. उसको कहां भी भय नहीं है. उसको खेती, उद्योग, धंदा करने की चिंता नहीं रहती है. यह कार्य आज मैने समाप्त किया . अब यह अवशिष्ट कार्य कल या परसों करूंगा ऐसी चिंता उसको नहीं रहती है, सुखार्थिनी महत्सुखं भवति संगपरित्यागनेति पति
मारकंतो पुरिसो भारं ऊरहिय णिव्वुदो होइ ॥ जह तह पयहिय गंथे णिसंगो णिबुदो होइ ।। ११७८ ॥
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