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मूलाराधना
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नहीं रहता है- यदि यह व्रतरूप परिणाम दूसरे परिणाम उत्पन्न होनेपर नष्ट होता है ऐसा कहोगे तो वह असद्रूप ठहरा असर कर सकते हैं कोई पदार्थं स होनेपर ही उसमें अपाय और परिहार हो सकते हैं. अतः व्रतोंके रक्षणार्थ रात्रिभोजन त्यागका वर्णन करना व्यर्थ है.
जब मै प्राणीका बात नहीं करूंगा ऐसा परिणाम आत्मामें उत्पन्न होता है तब मैं असत्य नहीं बोलूंगा वगैरह परिणाम उत्पन्न नहीं हो सकते हैं, तब अन्य परिणामोंके विषयोंमें क्या कहना चाहिए.
उपर्युक्त शंकाका उत्तर आचार्य इस प्रकार देते हैं
नामादिक विकल्पोंसे व्रतके चार प्रकार होते हैं. किसीका व्रत ऐसा नाम रखना यह नामवत कहलाता है. स्थापना व्रत - हिंसा, असत्य, चोरी इत्यादि पापोंसे निवृत्तिरूप परिणाम जिसमें उत्पन्न हुए हैं ऐसा आत्मा और शरीर दोनो भी बंधकी अपेक्षासे एकरूप हुए हैं. अतः सामायिकमें परिणत हुए जीवके आकार में Waist स्थापना करके उसको स्थापना व्रत कह सकते हैं.
आगम द्रव्यवत -- भविष्यकाल में आत्मामें व्रतके स्वरूपको ग्रहण करनेवाला अर्थात् जाननेवाला ज्ञानपरिणाम व्रतके स्वरूप जाननेमें अनुपयुक्त हैं. ऐसे ज्ञानपरिणत आत्माको आगम द्रव्यवत कहते हैं.
ज्ञायकशरीरव्रत - व्रतज्ञ आत्माका त्रिकालगोचर जो शरीर उसको ज्ञायकशरीरमत कहते हैं,
चारित्र मोह कर्मके क्षय, अवक्षयोपशम जिस आत्मामें विरक्तिरूप परिणाम उत्पन्न होगा वह आत्मा भावत कहलाता है.
उपशम में अथवा क्षयोपशममें जो चारित्र मोहकर्म रहा है उसको नो आगम द्रव्य व्यतिरिक्तकर्म व्रत
कहते हैं.
मैं हिंसा नहीं करूंगा: शूट नहीं बोलूंगा इत्यादिरूप जो ज्ञानोपयोग उसको आगमभावनत कहते हैं. चारित्र मोहनीय कर्मका उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशम होनेपर जो हिंसादि परिणामोंका अभाव होता है उसको अहिंसादि व्रत कहते हैं. इसको नो आगमभाववत कहते हैं.
प्राणिओंके प्राणोंका वियोग करनेमें प्रवृत्ति नहीं करना यह अहिंसाग्रत है. झूठ बोलनेमें, नहीं दी हुई वस्तु ग्रहण करने में, मैथुन में, और ममत्त्वमें आत्माकी परिणति नहीं होना इनको क्रमसे सत्यव्रत, अचौर्य व्रत,
भाश्वास:
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