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मूलाराधना
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अर्थ - रेवतका संरक्षण उसके आसमंतात् जो बाद लगाई जाती है वह करती है. नगरका संरक्षण खाई व. तट करते हैं तथा ये तीन गुप्तियां साधुका पापसे रक्षण करती है. पापका निरोध करनेमें अर्थात् संबर करने में ये उपाय हैं.
तह्मा तिविण तुमं मणवचिकायप्पओगजोगम्मि ||
होहि सुसमाहिदमंदी निरंतरं ज्याणसज्झाए | ११९० ॥ तस्मान्मनोत्रचः कायप्रयोगेषु समाहितः ॥
भय त्वं सर्वदा जातस्वाध्यायध्यान संगतिः ।। १२३० ॥
विजयोदयात विविधेण मणवनिकायपभोगजोगम्मि मनोवाक्कायविपथप्रकृष्टे योगे। तुम वं । सुसमा द्विदमी होहिं सुदुसमाहितमभित्र । कथं ? निरंतरं ज्झाणसज्झार निरंतरप्रवृत्त ध्यानस्वाध्यायः ध्यानस्वाध्यायायंतरेण यो नारिति स्वः ॥
एवं तिस्रोऽपि गुप्तः प्ररूय तत्र अपर्क सुसमाहितं कर्तुं क्षेममुपायमाह---
गुलारा---तम्दा यस्माद्गुप्तयः पापनिरोधोपायास्तस्मात्रिविधेऽपि मनोवाक्कायविषये प्रकृष्टे योगे व्यापारे सुसमाहितमतिर्भय त्वं । कथंभूतः सन ? निरंतर ज्झाणसार संततं ध्याने स्वाध्याये या प्रवर्तमानः सन् । ध्यानस्वाध्यायाभ्यां विना गुप्तयो नावतिष्ठन्ते इति भावः । उक्तं च
तस्मान्मनो वचः कायप्रयोगे सुसमाहितः । भव त्वं सर्वदा जातत्वाध्यायभ्यानसंगतिः ॥
अर्थ- ये तीनो गुप्तियां पापका संचर करनेमें कारण हैं इसलिये मन, वचन और शरीरकी प्रवृत्तिओं में हे क्षपक ! तुमको हमेशा सावधान रहना चाहिये. और हमेशा न्यान और स्वाध्याय में तत्पर रहना चाहिये. ध्यान और स्वाध्यायमें तत्पर रहनेसे गुप्तिओं का संरक्षण होता है जो ध्यान और स्वाध्यायमें अपनेको तत्पर नहीं करता है उस क्षपककी गुप्तियाँ स्थिर नहीं रह सकेगी
आश्वास ६
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