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आश्वास
मलमापना
शरीरविषया । हिंसादिणियत्ती प्राणिशाणठयपरोपणादत्तग्रहणगिथुनकर्मविशेषकरणोपकरणादिपरिमहमहणादिकायक्रिया । व्यावृत्तिः ।। सरीरगुत्ति शरीरमा सकिया नन शरीराच्छरीरक्रियायागुलिनिवृत्तिः शरीराविरिति स्थिनम् ॥
अर्थ-औदारिकादि शरीर की जो क्रिया होती रहती है उससे निवृत्त होना गृह कायगुप्तिका लक्षण है. अथवा हिंसा, चोरी बगेरह पापक्रियासे परास होना इसको भी कायगुधि कहते हैं.
शंका--बैठना, खडे रहना, शयन करना वगाहको क्रिया कहते हैं. ये क्रिया आत्माके द्वारा होती हैं अतः आत्मा इन क्रियाओंका प्रवर्तक होनेसे वह इन क्रियाओंसे कैसे परावृत्त हो सकता है ? अब इसके ऊपर यदि आप ऐसा कद्दागे आसनादिक क्रिया शरीरकी पर्याय है. आत्मा तो शरीरसे अन्य भिन्न वस्तु है. अर्थात् शरीरकी क्रियासे आत्मामें कुछ परिणति होती नहीं इसबास्ते शरीरकी क्रियाका आत्मामें त्याग होनस आत्मा शरीक्रियाने परावृत्त है ही अतः कायक्रियासे आत्मा निवृत्त होने से आत्माकी कायराप्ति है एमा कह सकते हैं. परंतु यह ! आपका कहना अनुचित है. परा कायमुनिका साप माकोरे पण भारपाया कायाप्ति मानना पडेगी.
उत्तर-शरीरसंघधिनी जो क्रिया होती है उसको ' काय' कहना चाहिये. इस क्रियाको कारणमृत जो आत्माकी क्रिया होती है उसका कायक्रिया कहना चाहिय. एमी क्रियास निदात्त हाना यह कायगुप्ति है.
कायोत्सर्गको भी कायगुप्ति कहते है शरीर अपवित्र है, असार है. आपत्तिका कारण है ऐसा विचार कर उस ममताका त्याग करना भी कायगुप्ति है अर्थात् शरीरपरसे ममत्वभावको हटाना भी कायगुप्ति है. शरीरका त्याग करना इसको कायगुप्ति नहीं कहना चाहिये. क्यों कि शरीर आयुकी शृंखलासे जकडा है उसका त्याग करना शक्य नहीं है. अतः इसकी अपेक्षासे कायगुप्ति मानेंगे तो कायोत्सर्गका अभावही होगा.
धातूके अनेक अर्थ होते हैं इसलिये यहां गुप्ति शब्दका निवृत्ति एसा अर्थ लेना चाहिये ऐसा सूत्रकारका अभिप्राय है. अन्यथा 'कायकिरियाणिषची सरीरंगे गुती' एसा वचन सूत्रकार कभी न कहते.
___ कायोत्सर्ग ग्रहण में जो शरीर की निश्चलता होती है उसको कायगुप्ति कहते हैं एसा यदि कहोगे तो 'कायकिरियाणिवत्ती शरीरंगे गुती ' ऐसा कहना व्यर्थ है. 'कायोत्सर्गः कायगुतिः' इतनाही गुप्तीका लक्षण कहना योग्य था ऐसी शंका करना भी योग्य नहीं है. क्योंकि शरीर विषयक ममत्व रहितपनाको अपेक्षासे कायोसर्गकी प्रवृत्ति होती है. यदि इतनाही अर्थ कायगुप्तिका माना जायगा तो भागना, एकस्थानसे अन्य स्थानके
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