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मुलाराधना ११४७
अर्थ -- सर्व मनुष्यों पर उसका विश्वास नहीं रहता है. इसलिए वह परिग्रहवान मनुष्य गांव में, शहरमें घर में, अरण्य में, अपने परिग्रहका जहां रक्षण होगा ऐसा स्थान ढूंढनेकी फिक्रमें रहता है. वह अपनी आत्माको वश करनेमें असमर्थ होता है
थपडियाए लुडो बीराचरियं विचिन्त्तमावसधं ॥
णेच्छदि बहुजणमज्झे वसदि य सामारिगावसए । १९४९ ॥ धीरेरास्वरितं स्थानं विविक्तं धनलालसः ॥
विहाय भूरिलोकानां मध्ये गेहीव तिष्ठति ।। ११८८ ॥
विजयोदयापाद्वालु ग्रंथनिमि तुम्धोषि धीरेवचिरितं विविकास नेति । बहुजनमध्ये वसति । गृहस्थानां वेश्मनि ॥
अंधविशेधः साधुः ।
मूला-पडिया यंत्रनिनित्तं धनं रक्षितुमित्यर्थः । यदि वा गंथपालु
वीराचरिदं महामुनिवैशिवं । आवसधं वसतिं । सागरिगावस गृहस्थाश्रये ।
अर्थ - वह कृपण मनुष्य परिग्रहमें लुब्ध होकर धीर पुरुष जहांपर रहते हैं ऐसे एकांत स्थानमें रहना पसंद नहीं करता है- वह जहां बहुत लोक रहते हैं ऐसे गृहस्थोंक घरमें रहता है.
सोण किंचिस सग्गथी होइ उठ्ठिदो सहसा ||
सव्वत्तो पिच्छंतो परिमसदि पलादि मुज्झदि य ॥ ११५० ॥
शब्द कंचिदसौ श्रुत्वा सहसोत्थाय धावति ॥
सर्वतः प्रेक्षते द्रव्यं परामृशति मुह्यति ॥ ११८९ ॥
विजयोदया- सोडून किंचि सहं श्रुत्वा कंचन शङ्खं परिग्रहवान्लहसोत्थितः सर्वा दिशः प्रेक्षमाणः परामृशति स्वं द्रव्यं, पलायते, मुह्यति वा ॥
मूलारा -- सोदूण किंचि सा शब्द सम्बतो सर्वा दिशः परिमसारे परामृशति । स्वं धनं ॥ अर्थ --- परिग्रहवान् मनुष्यके कुछ शब्द सुन लेनेपर भयसे चकित होता है, उठकर खडा होता है. चारो
आश्वास:
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