________________
मूलाराधना
आश्वासः
उक्तं च-हेतुमने कृतो मुढो दुर्निवारण मृत्युना ।
सेवते विषयं बच्यः पाणेनेच सुरादिकं ।। अर्थ-वध करनेके लिये जिसको ले जा रहे है ऐसा कोई मुढ मनुष्य जैसे मदिरा पीकर तांबूल मक्षण करता है जैसे कालके द्वारा मारने के लिये ले जानेवाले मनुष्य भी मूह हो कर विपयोंका सेवन करते हैं.
।
वरघपरहो लग्गो बले य जहा मासामकिशाहिदो । पडिदमधुबिंदुभक्खणरदिओ मूलम्मि छिज्जते ॥ १०६३ ॥ व्याघ्रणाये कृतो हत बिले साऽजगरे गतः ।। लिनमाने दृढं लग्नो मुले विविधमूषिकः ॥ १०९५ ।। अपश्यन्नग्रतो मृत्युं यथा कश्चन मूढीः ।।।
पतन्मधुकणास्वादे विश्ले परमां रसिम् ।। १०९६ ।। विजयोदया-वग्धपद्धो व्याघ्रणाशितनः । लग्गो लग्नः । मूलम्मि लतायाः मूले ससर्पति बिन पतिनः । पनिमाविदुभवणादिलो समस्कस्थानपति न मधुविदाम्बाद नरतिकः । मूलम्मि लिजंत । मूले छिद्यमाने भूपिका-1 भिगथा॥
दृष्टांतोपन्यासपुर:सरं विपयविनश्वरत्वं गाथात्रयेण भावयति
मुलाग़-बग्येति-बग्घपरद्धो व्याघ्रग प्रारब्धोऽभिद्रुनो हंतुमने कृत इनि यावत् । मूलम्मि ममर्पकपभिनितटप्ररूइवल्लीबुध्ने । पडिदमधुभिदुननगरदिओ कथमपि मुखपतितमाझिकल बास्वादनप्रीतिकः । विजेते छिद्यमाने मषिक:।
( अर्थ-मारनेके लिय जिसके पछि व्याघ्र लगा है, ऐसा कोई पथिक, जिसमें सर्प है ऐसे कयेकी भीतके तटपर ऊगी हुई वेलाक बुधाको पकरकर लटकने लगा. उस समय मधके छत्तेसे मधुर्विदु उसके ओष्ठके अग्रभागपर गिरने लगे तब वह व्याघ्र का दुःख भूल कर मधुपिंदुसे उत्पन्न होनेवाले स्वादमेंही आसक्त होगया. परंतु वह इस वलीका मूल चूहों के द्वारा काटा जा रहा है और मैं उसके काटनेपर कुएम पइंगा यह सब चाते वह पथिक जैसे भूल गया बसी ही संसारी मनुष्य की हालत है.
-
-
१०९२
पर