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मृलारापना
होता है. जिसका मन कर्मबंधसे भयभीत है वह परिग्रहका त्याग करे ? यह परिग्रहका त्याग मनमें आया तब किया अन्यथा नहीं किया ऐसी स्येनहाचारप्रवृत्ति योग्य नहीं है. निश्चयमे परिरहका त्याग करना चाहिये.
आचाम
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mantra
पहिल्यागी न वमपिकाचचितोऽपि निवपन फगव्यायपदिल्या -
लादिसब्बसंगच्याओ पढमो हु होदि टिक्किप्पो ॥ इहपरलोइयदोस सत्रे आवहदि संगो ह ॥ ११२२ ॥ ग्रंथी लोकद्धये दोपं विदधाति यतेस्तनः ।
स्थितिकल्पो मतः पूर्व चेलादिग्रथमोचनः ॥ ११५९ ॥ विऊयोदया-बलादिसम्धसंगचागो नि दशविधा हि स्थितिका निरूपिता अचलखादयः । तत्र आधलक्य नाम चलमात्र त्यागो न भयति । किंतु चेलादिमवसंगत्यागः प्रथमः स्थितिकल्पो दशानामाघः । इहपरलोगिगदोस ऐहिकामुप्मिकांश्च दोपानायति परिग्रहो, यस्मात्तस्माजन्मवगतदोपहरणादरचता सकलः परि.अहम्त्यायः । इति भावः ॥
सप बामपरिग्रहत्यागो न स्वमनीषिकाचचितोऽपि तु निश्चयेन कर्तव्यत्तयोपदिष्ट इत्याचष्टे --
मूलारा-पढमो प्रागुतानामाचेलक्यादिस्थितिकल्पाना यशानामाद्यः । हि नियमेन । इहपरलोदयदोस ऐहिकानामुष्मिकांश्च दोषानपकारकधर्मान् । हु यस्मात् । तस्माजन्मदवगतदोषपरिहारे आदरवना मकरः परिग्रहस्त्याज्य इनि भावः ॥
आगममें परिग्रहका त्याग करनका उपदेश किया है वह इस प्रकार
अर्थ-आचलक्क, उद्देसिग वगैरह दश प्रकारका स्थितिकल्प पूर्व में कहा है. आचेलक्य नामक कल्पमें वस्त्रकाही त्याग करने का उपदेश दिया है ऐसा नहीं किंतु वस्त्रादि सवे परिग्रहका त्याग अचेलक्य शब्दका अर्थ है. 'आचलक्य कल्प' दम कल्पों में प्रथम गिना है. पग्निहस इहलोकसंबंधी और परलोकसंबंधी दोष उत्पन्न होत है. परिग्रहसे यह मेरा है. यह भेग है एसा संकल्प जिस चीज में होता है उसका संरक्षण करना, संस्कार करना इत्यादिक कार्य करने पड़ते है. रक्षणादिक करते समय हिंसा होती है. उसके लिये झूठ बोलता है. चोरीभी करता है. मेथुनकार्यमें प्रवृत्ति करता है. इस परिग्रहसे अशुभ परिणाम होते हैं. नरकादि दुर्गतिका बंध होता है. और