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आचाम:
मलाराधना
परिप्रदेकदेशस्य नेलस्य परामर्श याापरिप्रहाणामुपलक्षणाथ उपास। यथा तालपलबंण कप्पदित्ति सूत्रे तालशब्दो बनरपवेशस्य पालयस्य परामर्शको बमस्तानां उपलक्षणाय गृहीतः । तथा चोक्तं कस्पेहरिदतणोसधिगुच्छागुम्मा बल्ली लदा य रुक्सा य ॥ एवं वणवीओ तालादेसेण आविठ्ठा ।
तालेदि दले दित्तिय सलेब जादोत्ति उसिदो वत्ति ।।
तालादिणो तरुत्तिय वणफदोणं यदि णाम ।। तालस्प प्रलंब तालप्रलंबं । पलंग च द्विविधं मूलप्रलय, अम्रप्रलं च । तत्र मुठप्रलये भूम्यनुप्रयशि कंद मटांकुरादिकं । ततो अन्यत्र प्रलयं अंकुरप्रवालपपुष्पफलादिक । वनस्पतिकदादिकम नुभोक्तुं निप्रथानाभायर्याणां च न युज्यते इति । यथा । तालपटबं ण कप्पदिति इत्यत्र सुत्रेऽर्थस्तथा सकलोऽपि याह्मः परिग्रहो गुगुक्षणां ग्रहीतुं न युध्यते इत्याचेलकति मनऽर्थ इति नात्पर्य । अधचा लुत्तोत्थ आदिसरो लुमोऽत्रादिशब्दः । अत्र आचेलक्कति मूत्रं माल प्रलंय सूत्रबदादिशब्दो लुप्रो त्रोद्भूयः । यथा तालादीति शब्दप्रयोगमकृत्वा तालपरबभिन्युक्तं । तथा आचेलादिकन्यमिति हाब्दप्रयोगमफत्वा आवेलक्यमियुक्त इत्याशयः । अन्ये स्वयं प्रतिपन्नाः देशो भूच्छालक्षागस अंतरंग यदि रंगभेदभन्नस्य परिग्रहस्यैकदेशो याह्यः परिग्रहः तत्परामर्शकमाचलक्यमिति मूी कर्तव्यनयावधारितं । शेषं समानं । तया चोक्त
तद्देशामर्शक सूत्रमाचलक्यामिनि स्थितम ।।
टुमोऽथवादिशब्दोऽत्र तालप्रलंबसूत्रवत ॥ आचेलक्य शब्दका अर्थ वस्खमात्रका त्याग ही है ऐसा आगमका आभिप्राय है इतर परिग्रहका त्याग करना चाहिए एसा आगम कहता नहीं है. इस शंकाका उत्तर आचार्य कहते हैं
अर्थ-दस प्रकारके स्थिति कल्पों में से आचलक्य नामक पहिला स्थितिकल्प है. आचेलक्य शब्द परिग्रहके एक देशका विचार दिखानेवाला सूत्र है. मुनिओंके स्थिति का कर्तव्य कर्मका प्रतिपादन करनेवाला यह सूत्र है. इसलिए इसको स्थितिकल्प कहते हैं. आचलक्य अर्थात् नम्रता धारण करना मुनिका कर्तव्य ही है इसलिए इसको स्थितिकल्प कहते हैं. इसका अभिप्राय यह है- चल शब्द परिग्रहका उपलक्षण है. अतः चेल शब्दका अर्थ वस्त्र ही न समझकर उसके साथ अन्य परिग्रहों का भी ग्रहण करना चाहिये अर्थात् आचलक्य शब्दका अर्थ वस्त्रका त्याम इतनाही नही है किंतु वस्त्रत्यागके साथ अन्य संपूर्ण परिग्रहका त्याग माना जाता है. इसके लिये