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|आश्वास
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स्त्रिया आजन्म अविवाहित रहकर निर्मल ब्रह्मचर्य व्रत धारण करती हैं. कितनेक स्त्रिया वैधव्यका ती दुःख आजन्म धारण करती हैं.
शीलवत धारण करनेसे कितनेक स्त्रियों में शाप देना और अनुग्रह करनेकी भी शक्ति प्राप्त हुई थी ऐसा शास्त्रों में वर्णन है. देवताओंके द्वारा ऐसी स्त्रियोंका अनेक प्रकारसे माहात्म्य भी दिखाया गया है.
ऐसी महाशीलवती खियाको जलप्रवाह भी महानेको असमर्थ है. अग्नि भी इनको नही जला सकती है. यह शीतल होती है. ऐसी स्त्रिओंको सर्प ज्यघ्रादिक प्रा खा नहीं सकते हैं. अथवा मुहमें लेकर अन्यस्थानमें नही फेक देते हैं.
संपूर्ण गुणोंसे परिपूर्ण, श्रेष्ठ पुरुपमेंभी श्रेष्ठ, तद्भव मोश्वगामी ऐसे पुरुषोंको कितनेफ शीलवती सिमोने जन्म दिया है.
मोहोदयसे जीव कुशल धनते हैं. मलिन स्वभावके धारक बनते हैं. यह महोदय सर्व खियोंमें और पुरुषों में समान रीतासे है. जो पीछे स्त्रियोके दोपोंका विस्तारसे वर्णन किया है वह श्रेष्ठ शीलवती सिगोंके साथ संबंध नहीं रखता है अर्थात् वह सब पर कुफील सिया राय ना पाहिए. पाकिः शीलवती स्त्रिया गुणोंका पुंजस्यरूपही है. उनको दोष कैसे छू सकते हैं. स्त्रीकृत दोषोन यहाटक वर्णन किया । सीगतान्योपानमिवाय अशुचिनिरूपणार्थ उसरमबंधा
देहस्स बीयणिप्पत्तिवेत्तआहारजम्मवुडीओ ॥ अवयवणिग्गमासुई पिच्छसु वाधी य अधुयत्तं ।। १०.१।। ।।
देहरूप पीजनिष्पत्तिक्षेत्रोधोजन्मवृद्धयः ।।
. अंसाच निर्गमोऽशाचं ज्ञेयं न्याधिरनित्यना।। १०३१॥ विजयोदया-हस्य चीज इत्यादिकः । देहस्य पीज, निष्पत्तिः, क्षेत्र, आहारः, जन्म, वृद्धिः, अधययः, निर्यमः, अशुचिः, व्याधिरध्रुवसेत्येताम्पश्येति सरिधीति क्षपकं ॥
एवं स्त्रीदोधान्याख्यायेदानी वेदांशुचित्वं साप्तषष्टया व्याचष्टे। तत्रा शरीरस्य शीजं, निष्पत्तिः, क्षेत्रमाहारो, जन्म, वृद्धिरवयवनिर्गमाशुचित्वमसारत्वप्रेक्षण, व्याघयोऽभुषत्वं चेप्ति द्वादश प्रबंधन व्यापकीर्षुः क्षपक प्रत्युदिशति
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