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आश्वास
मृलासपना
१०५६
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अर्थ-स्त्री पुरुषको शूलके समान भेद करती है. जसे पर्वत परसे नीचे गिरनेबाली नदी पदार्थको अडे जो अपने साथ बहाती हुई समुन्द्र में ले जाती है वैसे खी भी पुरुषको भवसमुद्र में फेक देनी है. जैसे
पोल हिना ने भी भी अपने जीवन मसान है. लोप पवमो मारना श्रीपिका, शशि जमान स्त्री पुरुषको जलाती है, मास दिनम पिसार पन्न अकाल की भी समय निकामी.. करात जसा काटीको भाडता है बसे पानी भलु
. हया दुभागण और साम्य न्यबहामनीती . सुजलास जैस सब अंगर कंड खुजली उत्पन्न होती है बैंग इराकं सहवाससे शांति नहीं मिलती है. यह पाशुक समान फाडती है व सुगरके समान दुराचरणसे पुरुष के हृदयपर आधात उत्पन्न करती है. पुरुपके चूर्ण करने के लिये स्त्री लोहके धन समान है.
चंद्र कदाचित् शीतलताको त्यागकर उष्ण बनेगा, कार्य भी थहा होगा. आकाश भी लोइपिंडके समान घन होगा. परंतु कुलीन बंशको भी स्त्री कल्याणकारिणी और सरल स्वभावकी धारक नहीं होगी,
ऊपर कहे हुए दोपोंके साथ और और भी अनेक दोष स्त्रियों में हैं. उनका यदि पुरुष विचार करेगा तो व! स्त्रिया उसको विप और अनिके समान भयानक दीखेंगी और उनसे उनका चित्त लौटेगाही. व्याघ्र, सर्प वगैरे कुर प्राणीओंके दोष जानकर जैसे मनुष्य उनसे दूर रहता है वैसे स्त्रियोंमें दोष है ऐसा जानकर पुरुषको उनका त्याग करना उचित है.
त्रियों में जो दोष है वे ही दोष नीच पुरुषों में भी रहते हैं. इतनाही नहीं स्त्रियों से भी उनकी अन्नादिकों से उत्पन्न हुई शक्ति अधिक रहनेसे उनमें अधिक दोष रहते हैं.
शीलका रक्षण करनेवाले पुरुषको स्त्री जैसे निंदनीय अर्थात् त्याग करने योग्य है वैसे शीलका रक्षण करने वाली स्त्रियोंको भी पुरुष निंदनीय अर्थात त्याज्य है. संसार, शरीर और भोगमे विक मुनिओंके द्वारा स्त्रिया निंदनीय मानी गई है तथापि जगामें कोई स्त्रिया गुणातिशयम शोभायुक्त होनसे मुनिओंके द्वारा भी स्तुति योग्य हुई है. उनका यश जगतमें फैला है. एमी स्त्रिया गनुप्यालीको देवताक समान पूज्य हुई है. देव उनको नमस्कार करते हैं. नीर्थकर, चक्रवर्ती, नारायण, बलभद्र और गणधरादिकाको प्रसयनवाली स्त्रिया देव, और मनुष्योंमे जो प्रधान ब्यक्ति हैं उनसे बंदनीय होगई है, कितनेक स्त्रिया एक पतिव्रत धारण करती है, कितने
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