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PARERANA
मूलाराधना
भावाम:
९३७
समुद्रद्वीपमध्यस्थाः कंदमूलफलाशिनः॥ बेदयते मनुष्यायुस्ते मृगोपमचेष्टिताः ॥ कर्मभूमिषुचकामहलभृद्धरिमभुजा स्कंधाधारसमूहेषु प्रयोञ्चारभूमिधु ।। शुक्रसिंघापाकलेप्मकर्णदतमलेषु च अत्यंताशुचिदेशेषु सनसम्मुन्छनेन थे। भूत्वांगुन्द्रस्यासस्येयभागमात्रशरीरकाः ।।
आशु नश्यम्त्यपर्याप्तात स्युः सम्मुईना नरा: 11 पतेपु कर्मभूमिजमानयानां पत्र रत्नपय परिणामयोग्यता नेतरेगां इति तदेव मनुजजन्म गृश्यते । सम्धेऽपि तस्मिन् शानावरणोदयादिसाहितपरीक्षायां समर्था बुद्धिन सुलमा । तया विना लम्धमपि मनुजजम्म विफलमेय दृष्टिरहितमिवायतं लोचन, दक्षिणसंपर्य विना कुलीनत्वमिव, सुभगतामतरेण रूपमिव, यथार्थतारहित षचममिव, सत्यामावि मती यदि नाप्तानां वचः श्रुणुयात् सापि विफलैय सरोजरहिता सरसीप । इहापि श्रषण आप्तवचनगोचरमेय गृहीत, श्रषणमपि श्रद्धानरहित सुलममेष । यथा यन प्रतिदित तथैवेति श्रद्धानै दुर्लभ दर्शनमोहोदयात् । सत्यपि श्रद्धाने नारित्रमोहोदयात् ज्ञातेऽभिरुचिते मार्ग प्रवृत्सिदुर्लभा । एवं दुरयजिजवसामणं दुःस्वार्जितधामण्यं । मा जहसु मा त्याक्षी । लणं व अगणतो तुमिय अगणयन्
अर्थ-इस प्राणीको दुःस्त्रम मनुष्य जन्मकी प्राप्ति होती है. उत्तम जाति, बुद्धि, मुनिपना, सम्यग्दर्शन, चारित्र में अवस्थायें उत्तरोनर दुर्लभ होनस महाकष्टमे प्राप्त होती हैं. गाथामें यद्यपि मनुष्यत्व, जाति ये शब्द सामान्यवाची है तो भी उनसे विशिष्ट मनुष्यत्व, उच्च जाति ऐसा अथे ग्रहण करना चाहिये.
मनुष्यके चार प्रकार है. उनका वर्णन
कर्मभृमिज. भोगभूमिज, अन्तीपज और समूर्छिम ऐसे मनुष्यके चार भेद है. जहां असि-शस्त्र धारण करना, मपि-बही खाता लिखना, कृषि-खेती करना, पशुपालन करना, शिल्पकाम करना अर्धाद हस्तकौशल्य के काम करना, वाणिज्य-व्यापार करना और व्यवहारिता-न्यायदानका कार्य करना. ऐसे छह कार्योंसे जहां उपजीविका करनी पडती है, जहां संयमका पालन कर मनुष्य तप करने में तत्पर होते हैं और जहां मनुष्याको पुण्यसे म्वर्ग प्राप्ति होती है और कर्मका नाश करनेसे मोक्षकी मामि होती हैं ऐसे स्थानको कर्मभूमि कहते हैं. ये कर्मभूमि अढाइद्वीपमें पंधरा है. अर्थात् पांच भरत, पांच ऐरावत और पांच विदेह.