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मूलाराधना
आश्चार
कर्मास्त्रव आता है उससे वह लिप्त होता है, दुष्ट वचन कर्मबंधका निमित्त होता है इसलिये हे क्षपक तूं उसका त्याग कर. मतिमातं चातुर्विध्यमाचशे
पढमं असंतवयणं संभूदत्थस्स होदि पडिसेहो ॥
स्थि णरस्स अकाले मच्चुत्ति जधेवमादीयं ॥ ८२४ ॥ प्रथमं तदुचोऽमा यत सतः निरोभना। अकाले मरणं नास्ति नराणामिति यद्वचः ।। ८३४ ॥
घिजयोदया-पढमं असंतषयर्ण चतुर्यु आद्यमसद्वचनं संभूदत्थस्स होदि पडिसेहो सतोऽर्थस्थ प्रतिषेधः । सतां सतो न वनर्म असद्धचमित्येकोऽर्थः । तस्योदाहरणमाइ-त्धि परस्स अकाल मच्चुत्ति पथमादिकं नास्त्यकाळ मनुष्य स्मृतिरिति पवमादिकं यचनं । आयुषः स्थितिकालः काल इत्युच्यते । तस्मान्कालदम्यः कालोऽकालः । तस्मिन्न काले । ननु च भोगभूमिनराणामनपवर्यमायुरतः अकाले मरणं नास्त्येष अतो युक्तमुच्यते जन्धि परम्स अकाले मकम्युक्ति । नरशम्दस्य सामान्य बाचिम्चात्सर्वनराविषयः अकालमरणाभाषोऽयुक्तः केपुचिकर्मभूमिजेषु तस्य सतो निषेधादिस्याभिमायः।
अर्थ-चार असत्य वचनोंमें पहिला असत्य वचन इस प्रकार समझना चाहिये-अस्तित्वरूप पदार्थका निश्व करना यह प्रथम असत्य वचनका भेद है. जैसे मनुष्यको अकालमें मृत्यु नहीं है, आयुप्यके स्थिति कालको यहाँ काल कहना चाहिये. इस कालसे जो अन्य काल उसको अकाल कहते हैं. शंका-मनुष्यको अकालमें मृत्यु नहीं है यह कहना सत्यही है क्योंकि भोगभूमिके मनुष्योंका आयुष्य विप शखादिसे कम होता ही नहीं अतः उनको अकालमें मरण नहीं है यह कहना योग्यही है. उसर-नर शब्द सामान्यवाची होनेसे संपूर्ण मनुष्योंका वाचक है. इस लिये अकाल मरण नहीं है ऐसा कहना अयोग्य ही है. कितने कर्मभुमीके मनुष्यों में अकाल मृत्यु है उसका यहाँ निषेध किया है. अतः अकालमें मनुष्योंको मरण नहीं है यह कहना सत्पदार्थका-विद्यमान पदार्थका निषेध करनेवाला होनेसे अवश्य असत्यही है.
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